देश भक्ति गीत-कविता-रमेश चौहान

देश भक्ति गीत-कविता

-रमेश चौहान

देश भक्ति गीत-कविता-रमेश चौहान
देश भक्ति गीत-कविता-रमेश चौहान

देश मेरा, मैं देश का (गीतिका छंद)

देश मेरा भक्ति मेरी, भक्ति का मैं धर्म हूँ ।
राष्ट्र मेरा कर्म मेरा, कर्म का मैं मर्म हूँ ।।
भूमि मेरी मातु मेरी, मातु का मैं लाल हूँ ।
लोग मेरे देश मेरा, देश का मैं ढाल हूँ ।।

है नही ये देश मुझ से, मैं यहां हूँ देश से ।
देह मेरी सोच मेरा, प्राणपन है देश से ।।
राष्ट्र सेवा मंत्र मेरा, मंत्र का मैं वर्ण हूँ ।
देश मेरा वृक्ष बरगद, वृक्ष का मैं पर्ण हूँ ।।

मातृभूमि ऊँचा स्वर्ग से (उल्लाल छंद)

देश हमारा हम देश के, देश हमारा मान है ।
मातृभूमि ऊँचा स्वर्ग से, भारत का यश गान है ।।

देश एक है सागर गगन एक रहे हर हाल में ।
देश भक्ति का चंदन सजे, नित्य हमारे भाल में ।।

धर्म हमारा हम धर्म के, जिस पर हमें गुमान है ।
धर्म-कर्म जीवन में दिखे,जो खुद प्रकाशवान है ।।

फंसे रहेंगे कब तलक हम, पाखंडियों के जाल में ।
देश भक्ति का चंदन सजे, नित्य हमारे भाल में ।।

जाति हमारी हम जाति के, जिस पर हम को मान है ।
जाति-पाति से पहले वतन, ज्यों काया पर प्राण है ।।

बटे रहेंगे कब तलक हम, जाति- पाति जंजाल में ।
देश भक्ति का चंदन सजे, नित्य हमारे भाल में ।।

अपने का अभिमान है जब, दूजे का भी मान हो ।
अपना अपमान बुरा लगे जब, दूजे का भी भान हो ।।

फंसे रहेंगे कब तलक हम, नेताओं के जाल में ।
देश भक्ति का चंदन सजे, नित्य हमारे भाल में ।।

दोहावली

जय जय जय जय हिन्द जय. जय जय वीर सपूत ।
राष्ट्र प्रेम जनमन भरे. बालवृंद अभिभूत ।।

नाना सुर अरु साज से. मधुर लगे संगीत ।
भांति भांति के पुष्प से. अभिनंदन की रीत ।।

राष्ट्र धर्म ही धर्म है. सब धर्मो का सार ।
जिसको जन्नत चाहिये. राष्ट्र धर्म सम्हार ।।

हम तो जी रहे हैं केवल देश के लिये

हम कैसे मान लें
तूने आजादी का पौध रोपा है
हमने तो तुझे केवल
मूल को ही काटते देखा है

तुझे लड़ना है तो लड़
अधिकारों के लिए
हमें तो केवल कर्तव्य को ही जीना है

हम सीमा पर
मर नहीं सकते देश के लिये
तो क्या
हम तो जी रहे हैं केवल देश के लिये

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