-आलेख महोत्सव-
राष्ट्र विकास
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्य की धरोहर’, आलेख महोत्सव का आयोजन कर रहा है, जिसके अंतर्गत यहां राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्ट्र की संस्कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्तुत है-डॉ. शोभा उपाध्यासय द्वारा लिखित आलेख ”राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान’।
गतांक- 7. राष्ट्रीय कर्त्तव्य ही राष्ट्रभक्ति है
राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान
-डॉ. शोभा उपाध्याय

राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदान
परिचयः-
विकास का अर्थ है गुणात्मक परिवर्तन। यह सदैव सकारात्मक होता है। विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक उसमें पहले की विद्यमान दशाओं में कुछ सकारात्मक या गुणात्मक जुड़ न जाए। राष्ट्र विकास एक सच्ची राष्ट्र सेवा है। यदि राष्ट्र है तो हम है! यह हर नागरिक का परम कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्र की सुरक्षा एकता, सुंदरता तथा निर्माण के लिए योगदान दें। कोई भी कार्य करने से पहले यह विचार करना आवश्यक है कि इसका प्रभाव हमारे देश या राष्ट्र पर क्या पड़ेगा। किसी भी राष्ट्र के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना उस राष्ट्र के लिए प्राण वायु के समान है। क्योंकि राष्ट्र किसी भूमि से नही किसी निश्चित भू-भाग में रहने वाले एक समान सोच वाले लोगों से बनती है, जिसे सभी लोग मिलकर एक राष्ट्र का नाम देते है। प्रत्येक राष्ट्र की उन्नति अथवा अवनति इस बात पर निर्भर करती है कि उसके नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना किस सीमा तक विकसित हुई है। यदि नागरिक राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत है तो राष्ट्र उन्नति के शिखर पर चढ़ता रहेगा अन्यथा उसे एक दिन धरातल पर गिरना पड़ेगा। कहने के लिए नागरिकों में राष्ट्रीयता या राष्ट्र विकास की भावना होना परम आवश्यक है।
राष्ट्र विकास के आवश्यक तत्वः-
- शक्ति
- शान्ति
- सांस्कृतिक एकता की रक्षा
- आर्थिक समृद्धि
- कुशल नेतृत्व
(1) शक्तिः-
किसी भी राष्ट्र के लिए शक्ति का बहुत महत्व है यदि राष्ट्र शक्तिशाली है तो वह देश की आन्तरिक और बाह्य समस्याओं को प्रभावशाली ढंग से निपटा सकता है। राष्ट्रीय उद्देश्यों की प्राप्ति करने तथा पड़ोसी देशों से मजबूत संबंध स्थापित करने में भी यह शक्ति महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
(2) शान्तिः-
राष्ट्र में जहाँ अपनी सुरक्षा के लिए शक्ति की आवश्यकता है वही दूसरी ओर चहुँमुखी विकास करने के लिए शान्ति की आवश्यकता होती है। राष्ट्र की आन्तरिक शांति अन्दर से मजबूत बनाने में सहायक होती है तथा संसाधनों के भरपूर उपयोग करके देश निरंतर विकास मार्ग पर अग्रसर रहता है। लगातार अशान्ति से देश कमजोर बनता है तथा स्वयं के हितों की रक्षा करने में असफल होता है और प्रतिस्पर्धा के इस युग में दूसरे राष्ट्रो से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता क्योंकि वह आपसी कलह में ही उलझा रहता है।
(3) सांस्कृतिक एकता की रक्षाः-
संस्कृति भी देश के नागरिकों को जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। देश के नागरिकों का भी यह परम कर्त्तव्य है कि वे अपनी संस्कृति की रक्षा करें तथा उसका पालन करते हुए आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करें।
(4) आर्थिक समृद्धिः-
आर्थिक समृद्धि ही वह तत्व है जो किसी भी राष्ट्र के विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह आर्थिक स्थिरता का प्रतीक है तथा अंतराष्ट्रीय जगत में यह मजबूती प्रदान करती है। अगर कोई राष्ट्र आर्थिक रूप से समृद्ध है तो अन्य देश भी उससे मित्रता के संबंध स्थापित करना चाहते है तथा वह देश के आंतरिक शक्ति एवं शान्ति स्थापित करने में अहम भूमिका निभाती है।
(5) कुशल नेतृत्वः-
कुशल नेतृत्व राष्ट्र विकास का महत्वपूर्ण तत्व है यदि नेतृत्व कुशल हाथों में है तो देश में शान्ति व सुरक्षा का माहौल होगा जिससे आर्थिक समृद्धि आएगी तथा सांस्कृतिक एकता को बनाये रखने तथा नागरिकों के हितों की अच्छे से देखभाल हो सकती है। पड़ोसी देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होगा तथा देश शक्तिशाली बनेगा।
राष्ट्र विकास में एक व्यक्ति का योगदानः-
राष्ट्र विकास कोई सूक्ष्म तत्व नहीं है यह अपने आप में एक वृहद तथा गंभीर तत्व है। इसमें देश के प्रत्येक व्यक्ति का योगदान आवश्यक है। देश में शान्ति व्यवस्था हो या सांस्कृतिक एकता की बात या फिर आर्थिक समृद्धि या कुशल नेतृत्व का चयन देश का प्रत्येक नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बिना नागरिकों के सहभागिता के कोई भी राष्ट्र विकास नहीं कर सकता है। एक व्यक्ति राष्ट्र विकास में जो योगदान दे सकता है वह निम्नलिखित हैः-
(1) उच्च चरित्र के निर्माण सेः-
उच्च चरित्र से व्यक्ति में स्थिरता आती है। वह आर्थिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक उचित मूल्यों को अपनाता है तथा राष्ट्र विकास में अपना योगदान देता है। चरित्र ही वह तत्व है जो व्यक्ति को निखारता है। सही और गलत का बोध कराता है तथा देश के आर्थिक विकास में योगदान करता है। यदि व्यक्ति चरित्रवान है तो वह सबसे पहले राष्ट्र हित का ध्यान रखेगा निजी स्वार्थ भावना को त्याग कर देगा।
(2) मौलिक कर्त्तव्यों का पालन करकेः-
भारतीय संविधान ने प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक और आर्थिक समानता प्रदान की है। वह जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर प्रदान करता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि कुछ मौलिक कर्त्तव्य जो हर राष्ट्र सुनिश्चित करता है उसका पालन पूरी श्रद्धा से करें।
(3) तुच्छ स्वार्थ भावना को त्याग करः-
हर व्यक्ति को कुछ निजी स्वार्थ होते है। पर उन निजी स्वार्थ की भरपाई राष्ट्रीय हित या राष्ट्र विकास के तत्वों को नुकसान पहुंचाकर नहीं किया जाना चाहिए। व्यक्ति को नैतिक अनैतिक का फर्क समझना चाहिए अपनी तुच्छ स्वार्थ को त्याग कर राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देनी चाहिए।
(4) कानून व्यवस्था का पालन करकेः-
कानून व्यवस्था का निर्माण जनता को न्याय दिलाने तथा देश में शांति स्थापित करने के लिए होता है यदि जनता कानून का पालन ना करें और विरोध करें तो देश में अशांति का वातावरण फैल जाता है। अशांति असुरक्षा को जन्म देती है जिससे देश का माहौल दूषित होता है तथा तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अतः इस तनाव व असुरक्षा से बचने के लिए एक व्यक्ति का यह परम कर्त्तव्य है कि देश के कानून व्यवस्था का सम्मान करें तथा नियमों का पालन करें।
(5) जीवन में सही मार्ग का चयन करकेः-
युवा देश का भविष्य है। देश के विकास में युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। परिवार, समाज व राष्ट्र का यह परम कर्त्तव्य है कि युवाओं को सही मार्गदर्शन मिले तथा वह सही राह का चुनाव करें। यदि युवा मार्ग से भटक गया तो अनैतिक कार्यो को बढ़ावा मिलेगा तथा देश का भविष्य अंधाकारमय हो जाएगा।
(6) शिक्षा को महत्व देकरः-
शिक्षा समाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। शिक्षित नागरिक ही शिक्षित समाज का निर्माण करते है। शिक्षा का स्तर देश में जैसा होगा समाज भी वैसा ही प्रगति करेगा। युवाओं को शिक्षा को महत्व देना चाहिए वह शिक्षा को बीच में छोड़ देते है इससे व्यक्तिगत तथा सामाजिक नुकसान होता है तथा राष्ट्र आर्थिक समृद्धि में पिछड़ जाता है।
(7) युवाओं के द्वारा समय का सदुपयोग होः-
युवा देश का भविष्य है उनकी सोच व प्रगति से समाज व राष्ट्र प्रगति करता है। उन्हें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। माता-पिता व विद्यालय को भी इसमें मदद करना चाहिए कि युवा अपने खाली समय को कैसे समाज उपयोगी बना सकते है। शिक्षा के साथ-साथ अन्य ब्व.बनततपबनसंत ।बजपअपजपमे का आयोजन स्कूल द्वारा समय-समय पर करना चाहिए जिससे बालक की रचनात्मक तथा सृजनात्मक शक्तियों को जाना जा सकें। बालक अपनी रूचि को महत्व दे ताकि पढ़ाई बोझिल ना लगे।
(8) भ्रष्टाचार का विरोध करेंः-
देश की प्रगति में भ्रष्टाचार बहुत बड़ा बाधक तत्व है। युवाओं को भ्रष्टाचार का घोर विरोध करना चाहिए तथा लालफिताशाही व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। भ्रष्टाचार उस दीमक के जैसे कार्य करता है जो समान को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है। यदि हर युवा यह ठान लें कि वह भ्रष्टाचार ना करेंगे, ना करने वाले का साथ देंगे और ना ही इसके होने पर शांत रहेंगे तो यह कुछ हद तक ये कम हो सकता है।
(9) देश का आर्थिक उन्नति में सहयोगः-
राष्ट्र विकास तभी करेगा जब वह आर्थिक रूप से उन्नत होगा। आर्थिक उन्नति के लिए देश के हर युवा का शिक्षित व रोजगार होना बहुत जरूरी है। युवाओं को यह प्रयास करना चाहिए कि अपने समय का सदुपयोग करें, किसी रोजगार में लगे रहे ताकि आय के उचित साधन से अपना और राष्ट्र का विकास कर सकें।
(10) घृणा, द्वेष तथा असहयोग की भावना को त्यागकरः-
हमारी सोच, हमारे व्यवहार का प्रतिबिम्ब है हम जो सोचते है या विचारते है उसकी झलक स्पष्ट दिखाई देती है। यदि हमारे दिल में घृणा, द्वेष या असहयोग का भाव होगा, व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा या दूसरे से खीचतान होगी तो हम अपना समय नष्ट करने के सिवा कुछ नहीं करेंगे। आज तक घृणा, द्वेष या असहयोग से कोई प्रगति नहीं कर पाया है। समाज में प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के सहयोग, प्रेम व सद्भाव की आवश्यकता होती है। अतः युवाओं को स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के भाव रखने चाहिए तथा सहयोग करते हुए अपना और देश का विकास करना चाहिए।
निष्कर्षः-
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। भारत की एकता व अखण्डता में जातिवाद, सम्प्रदायवाद, आतंकवाद, सामाजिक व आर्थिक विभिन्नताएँ एवं नेतृत्व के अभाव ने बहुत प्रभावित किया है। राष्ट्रीय हित या विकास अपने-आप में एक गंभीर मुद्दा है इसे किसी एक के द्वारा प्रयास करने से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रीय विकास के लिए उचित शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ प्रत्येक नागरिकों के सहयोग की आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने देश की उन्नति के लिए निजी स्वार्थ को त्यागकर देश को सर्वोपरि रखकर उसकी उन्नति के लिए प्रयास करें क्योंकि देश है तो हम है।
संदर्भः-
-डॉ. शोभा उपाध्याय
सहायक प्राध्यापक
हितकारिणी प्रशिक्षण
महिला महाविद्यालय
जबलपुर (म.प्र.)
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-संपादक
सुरता: साहित्य की धरोहर
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बेहतरीन आलेख बधाई💐💐💐💐💐