पुस्‍तक: मानसिक शक्ति-स्‍वामी शिवानंद

पंचम अध्याय

विचार-शक्ति का विकास

. नैतिक शुद्धि से विचार-शक्ति

जो मनुष्य सदा सत्यवादी है, नैतिक दृष्टि से पवित्र और परिशुद्ध है, उसकी विचार-शक्ति अधिक बलशाली होती है। जिसने दीर्घकालीन अभ्यास के द्वारा क्रोध को जीत लिया है, उसके अन्दर अत्यन्त प्रबल विचार-शक्ति होती है।

ऐसी शक्तिशालिनी विचार-शक्ति से सम्पन्न योगी यदि एक ही शब्द बोलता है, तो भी उसका अद्भुत परिणाम लोक-मानस पर होता है।

सच्चाई, निष्ठा, उद्यमशीलता आदि सद्गुण विचार-शक्ति संचित करने के सर्वोत्कृष्ट साधन हैं। पवित्रता हमें ज्ञान और अमृतत्व की ओर ले जाती है। पवित्रता दो प्रकार की है-आन्तरिक और बाह्य, मानसिक और शारीरिक ।

मानसिक शुद्धि विशेष महत्त्वपूर्ण है। शारीरिक शुद्धि भी आवश्यक है। आन्तरिक मनः शुद्धि के कारण चित्त की प्रसन्नता, मन की एकाग्रता, इन्द्रियों पर विजय और आत्मसाक्षात्कार की योग्यता प्राप्त होती है।

. एकाग्रता से विचार-शक्ति

मनुष्य के विचारों की शक्ति की कोई सीमा नहीं है। मनुष्य अपने मन को जितना एकाग्र करता जाता है, उतनी ही उसकी अवधान-शक्ति बढ़ती जाती है।

सांसारिक विषयों में फँसे हुए व्यक्ति के मन की किरणें विकीर्ण हो जाती हैं। नाना दिशाओं में बह कर चित्त-शक्ति का अपव्यय होता है। एकाग्रता की साधना के लिए इन सब बिखरी हुई शक्तियों को अभ्यास द्वारा केन्द्रित करना होता है और फिर मन को ईश्वर की ओर मोड़ना होता है।

अवधान का अभ्यास करो तो अच्छी एकाग्रता सिद्ध होगी। शान्त चित्त ही एकाग्रता साध सकता है; अतः मन को शान्त रखो; सदा प्रसन्न रहो; तभी एकाग्रता पा सकोगे। एकाग्रता की साधना नियमतः करो। एक ही स्थान पर, एक ही समय अर्थात् प्रातः ४ बजे प्रतिदिन अभ्यास करो।

ब्रह्मचर्य, प्राणायाम, सादगी, सक्रियशीलता का न्यूनीकरण, अनुद्वेग, मौन, एकान्त, इन्द्रियनिग्रह, जप, क्रोधजय, उपन्यास तथा समाचार-पत्र आदि के वाचन का त्याग, सिनेमा न देखना- ये सब एकाग्रता के अभ्यास में सहायक हैं।

अत्यधिक शरीर-श्रम, बहुत बोलना, अपरिमित भोजन, सांसारिक लोगों से विशेष मिलना-जुलना, अत्यधिक भ्रमण, असीम विषय-भोग-ये सब एकाग्रता की साधना में बाधक हैं।

. व्यवस्थित चिन्तन से विचार-शक्ति

अस्त-व्यस्त चिन्तन छोड़ दो। एक विषय लो और उसी के विभिन्न पहलुओं तथा पक्षों पर चिन्तन करो। जब इस प्रकार एक विषय पर चिन्तन करने लगो तब सचेतन मन में कोई विचार आने न दो। यदि मन कहीं अन्यत्र जाये तो उसको तुरन्त अपने ध्येय-विषय पर खींच लाओ।

मान लो, जगद्‌गुरु शंकराचार्य के जीवन और उपदेशों का आप चिन्तन करने बैठो, तो उनके जन्म-स्थान, उनका बाल्य-जीवन, उनका चारित्र्य, उनका व्यक्तित्व, उनके गुण, उनकी शिक्षा, उनके ग्रन्थ, उनका तत्त्वज्ञान, उनके ग्रन्थों का कोई प्रमुख प्रसंग या श्लोक, उनके द्वारा समय-समय पर प्रदर्शित सिद्धियाँ, उनकी दिग्विजय, उनके चार शिष्य, चार मठ, उनका गीता-भाष्य, उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र के भाष्य आदि के विषय में विचार करो। क्रमिक रूप से एक के बाद एक विषय लेते जाओ। उन्हें समाप्त करने तक छोड़ो नहीं। बार-बार मन को एक विषय पर लाओ। तदनन्तर किसी अन्य विषय को लो।

इस प्रकार के अभ्यास से व्यवस्थित चिन्तन करना सध जायेगा। मानसिक चित्र ओजस्वी तथा शक्तिशाली हो उठेंगे। वे अधिक स्पष्ट होंगे, पूरा-पूरा समझ में आने लगेंगे। साधारण मनुष्यों के ये मानसिक चित्र अस्पष्ट और उलझे हुए होते हैं।

. संकल्प-शक्ति से विचार-शक्ति

जो भी वैषयिक विचार आये, उसे अस्वीकृत कर दो; जो भी प्रलोभन का विचार आये, उसका प्रतीकार करो; प्रत्येक कटु वचन का सँरोध कर दो; उदात्त आकांक्षाओं का विकास करो-ये सब आपकी संकल्प-शक्ति या आत्म-शक्ति को विकसित करने में सहायक होंगे और आप अपने लक्ष्य के निकट से निकटतर होते जाओगे।

तीव्र भावना के साथ मन में दोहराओ :

मेरी संकल्पशक्ति सुदृढ़ है, पवित्र है, अबाध है।

मैं अपनी संकल्पशक्ति द्वारा सबकुछ कर सकता हूँ।

मेरे पास अजेय मनोबल है।

संकल्प ही आत्मा की गति-शक्ति है। जब वह काम करने लगता है तब निर्णय-शक्ति, स्मरण-शक्ति, ग्रहण-शक्ति, सम्भाषण-शक्ति, तर्क-शक्ति, विवेक-शक्ति, विचार-शक्ति और अनुमान-शक्ति-ये सभी मानसिक शक्तियाँ सद्यः कार्यकर हो जाती हैं।

मानसिक शक्तियों का राजा संकल्प है। जब विचार और संकल्प शुद्ध और अबाध बना दिये जाते हैं, तब वे अद्भुत कृत्य कर सकते हैं। अश्लील वासनाओं, विलास और वैषयिक सुख की लालसाओं से संकल्प अशुद्ध और दुर्बल हो जाता है। कामनाएँ जितनी कम होंगी, उतनी ही विचार और संकल्प की शक्तियाँ बलवती होंगी। जब वैषयिक और शारीरिक शक्तियाँ तथा क्रोध आदि वृत्तियाँ संकल्प-शक्ति के रूप में परिणत कर दी जाती हैं, तब वे सहज नियन्त्रित होती हैं। प्रबल संकल्प-शक्ति वाले मनुष्य के लिए इस संसार में कुछ भी अशक्य नहीं है।

जब आप काफी पीने की अपनी पुरानी आदत छोड़ देते हो तो एक सीमा तक रसनेन्द्रिय का नियन्त्रण कर लिया, एक वासना नष्ट कर दी और उसकी लालसा का उन्मूलन कर दिया। चूँकि इससे काफी प्राप्त करने के प्रयत्नों से मुक्ति पा ली और उसकी आदत छूट गयी, इसलिए कुछ शान्ति पाओगे। जो शक्ति काफी की बेचैनी से नष्ट होती थी और आपको उद्विग्न बनाती थी, वह सारी शक्ति अब संकल्प-शक्ति के रूप में रूपान्तरित हो जायेगी। एक काफी की वासना पर विजय पाने से आपकी संकल्प-शक्ति में वृद्धि हुई, इसी प्रकार अन्यान्य पन्दरह कामनाएँ छोड़ दो तो आपकी संकल्प-शक्ति पन्दरह गुना अधिक और काफी बलवती होगी। इस प्रकार संकल्प-शक्ति को बलवान् करने की प्रक्रिया से अन्यान्य कामनाओं के छूटने में भी सहायता मिलती है।

चित्त की अचंचल स्थिति, समत्व, प्रसन्नता, आन्तरिक बल, कठिनाई का सामना करने की क्षमता, प्रत्येक काम में सफलता, लोगों को प्रभावित करने की शक्ति, उदात्त और भव्य व्यक्तित्व, चेहरे पर दिव्य तेज, तेजस्वी आँखें, स्थिर दृष्टि, शक्तिशाली वाणी, सुन्दर चाल, न झुकने की वृत्ति, निर्भयता आदि-आदि प्रबल संकल्प-शक्ति वाले व्यक्ति के कुछ प्रकट चिह्न हैं।

. स्पष्ट चिन्तन के कुछ सुझाव

सामान्य मनुष्य के संकल्प-विकल्प साधारणतः बहुत ही विक्षिप्त होते हैं। वह जानता ही नहीं कि चिन्तन कितना गहरा होता है। उसके विचार दौड़ते रहते हैं। उसका मन प्रायः ही बहुत उलझा हुआ होता है।

केवल विचारक, दार्शनिक और योगियों में ही सुस्पष्ट और असन्दिग्ध मानसिक चित्र होते हैं। अन्तर्दृष्टि से उन्हें अत्यन्त स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जो एकाग्रता और ध्यान की साधना करते हैं, उनके मानसिक चित्र सुव्यवस्थित और प्रबल होते हैं।

आपके अधिकतर विचारों का ढाँचा ही ठीक नहीं होता। विचार आते हैं और चले जाते हैं, इसलिए वे भ्रान्त और अनिश्चित होते हैं। चित्र स्पष्ट नहीं होता, बलशाली और असन्दिग्ध नहीं होता।

निरन्तर स्पष्ट और गम्भीर चिन्तन के द्वारा ये गुण प्राप्त किये जा सकते हैं। विचार, विवेक, मनन और ध्यान से अपनी विचार-शक्ति को स्थिर करना होगा और एक सुनिश्चित आकार में ढालना होगा, तब दार्शनिक विचार सुदृढ़ होगा।

सम्यक् चिन्तन, विवेक, आत्म-निरीक्षण और ध्यान से अपने विचारों का विश्लेषण करना होगा, तब सारी सन्दिग्ध अवस्था दूर हो जायेगी, विचार सुदृढ़ होंगे और उनका आधार मजबूत होगा।

चिन्तन स्पष्ट रहे। बार-बार अपने विचारों का विश्लेषण करो। एकान्त में आत्म-निरीक्षण करो। अपने विचारों को प्रचुर मात्रा में शुद्ध करो। विचारों को शान्त कर दो।

मन को उबलने न दो। एक विचार को उठने दो और शान्ति से चुप हो जाने दो; तब दूसरा विचार आने दो। जिस क्षण चिन्तन के अधीन जो विचार है, उससे असम्बद्ध सभी अप्रासंगिक विचारों को भगा दो।

. गम्भीर और मौलिक चिन्तन की साधना

हममें से अधिकांश लोग जानते ही नहीं कि सही चिन्तन क्या होता है। बहुतों का चिन्तन बड़ा उथला होता है। ऐसे लोग बहुत ही कम होंगे जो गम्भीर चिन्तन करते हों। इस संसार में विचारक बहुत कम हैं।

गम्भीर चिन्तन के लिए कठोर साधना करनी पड़ती है। चित्त के सही विकास में अनेक जन्म लगते हैं और तब चिन्तन गम्भीर तथा व्यवस्थित हो पाता है।

वेदान्ती स्वतन्त्र और मौलिक चिन्तन का अवलम्बन लेते हैं। वेदान्त-साधना (मनन) के लिए तीक्ष्ण बुद्धि आवश्यक है।

कठोर चिन्तन, स्थिर चिन्तन, स्पष्ट चिन्तन, समस्या के मूल में जा कर चिन्तन करना, परिस्थितियों के आधारभूत कारण में जा कर विचार करना, प्रत्येक विचार और वस्तु की पूर्व-कल्पना के मूल का चिन्तन-यह वेदान्त-साधना का सार है।

जब हमारे पुराने विचारों के स्थान पर उनसे उन्नत कोई नया विचार आता है तब हमें उन पुराने विचारों को छोड़ देना होगा-भले ही वे कितने ही प्रबल और रूढ़ हो गये हों।

यदि आपमें अपने चिन्तन के परिणामों का सामना करने तथा अपने विचारों की परिणति को आत्मसात् कर लेने का साहस नहीं है, भले आपके व्यक्तित्व पर उसका कुछ भी प्रभाव पड़े, तो कभी तत्त्वज्ञान की दुहाई देने का कष्ट न करो; भक्ति की शरण लो।

. व्यावहारिक स्थिर चिन्तन के लिए ध्यान

विचार एक प्रबल शक्ति होने के कारण अपने साथ अद्भुत शक्ति ले जाता है; इसलिए आज यह जानना अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि इस विचार-शक्ति का अधिक-से-अधिक उत्तम उपयोग कैसे किया जाये। यह तो ध्यान-साधना से ही सम्भव है।

व्यावहारिक चिन्तन मन को विषयों में केन्द्रित करता है और स्थिर चिन्तन से मन निरन्तर उसमें लगा रहता है। वैराग्य मन के आनन्द और विकास-वृद्धि में सहायक होता है जिसका हेतु कल्याणकारी होता है। ऐसे वैराग्य के साथ उपर्युक्त दोनों प्रकार का चिन्तन जुड़ा होता है।

जब ध्यान जाग्रत होता है तब विचार स्थिर होता और व्यावहारिक बनता है तथा वैराग्य, आनन्द और मन की समग्रता का विकास होता है।

. रचनात्मक विचार-शक्ति प्राप्त करें

विचार एक प्राणभूत जीवन्त शक्ति है। यह इस विश्व में वर्तमान शक्तियों में सर्वाधिक प्राणभूत, सूक्ष्म तथा अरोध्य शक्ति है।

विचार जीवन्त पदार्थ हैं। वे गतिशील होते हैं। उनका रूप, आकार, रंग, गुण, द्रव्य, बल तथा भार होता है।

विचार ही वास्तविक कर्म है। वह अपने को गतिशील शक्ति के रूप में अभिव्यक्त करता है।

हर्ष का विचार दूसरों में सहचारी भाव से हर्ष का विचार उत्पन्न करता है। उदात्त विचारों का उद्भव दुष्ट विचारों को निष्फल बनाने के लिए एक शक्तिशाली विषनाशक वस्तु है।

अभ्यस्त धनात्मक विचारों के माध्यम से हमें रचनात्मक शक्ति प्राप्त होती है।

. वैयक्तिकता का विकास करें : सुझावों का प्रतिरोध करें

दूसरों के सुझावों से प्रभावित न हों। अपनी वैयक्तिक भावना रखें। यद्यपि दृढ़ विचार अधीनस्थ व्यक्ति को तुरन्त प्रभावित नहीं करता, पर समय पा कर वह कार्य करता है। वह कभी भी व्यर्थ नहीं जाता।

हम सब सुझावों के जगत् में रहते हैं। हमारा चरित्र दूसरों के साहचर्य से नित्यप्रति अज्ञात रूप से रूपान्तरित होता रहता है।

हम अनजाने ही अपने प्रशंसापात्र व्यक्ति के गुणों का अनुकरण करते हैं। नित्य प्रति अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों के सुझावों को हम नित्य ही आत्मसात् करते हैं। हम इन सुझावों से प्रभावित होते हैं। दुर्बल विचारों वाला व्यक्ति सुदृढ़ विचार वाले व्यक्ति के सुझावों को स्वीकार करता है।

सेवक स्वामी के सुझावों से प्रभावित रहता है। पत्नी अपने पति के सुझावों से प्रभावित रहती है। रोगी डाक्टर के सुझावों से प्रभावित होता है। छात्र अध्यापक के सुझावों से प्रभावित रहता है।

रूढ़ि सुझाव की उपज के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं। आपकी वेश-भूषा, आपका शिष्टाचार, व्यवहार और यहाँ तक कि आपका आहार भी सुझावों के ही परिणाम हैं।

प्रकृति नाना प्रकार के सुझाव देती है। प्रवहणशील सरिताएँ, जाज्वल्यमान रश्मिमाली, सुरभित पुष्प, वर्धमान तरुवर-ये सब आपको निरन्तर सुझाव देते रहते हैं।

१०. विचार-नियमन से अलौकिक शक्तियाँ

एक शक्तिशाली बाजीगर अपनी एकाग्रता और संकल्प-शक्ति से सभा में बैठे सब लोगों को एक-साथ सम्मोहित कर देता है और कई करतब दिखाता है। वह आकाश में एक लाल रस्सी उछाल कर कहता है कि इस रस्सी पर चढ़ कर वह आकाश में चला जायेगा और आँख झपकते ही मंच से अदृश्य हो जाता है; किन्तु फोटो लेने जायें तो कुछ पता नहीं चलेगा।

विचार-शक्ति को ठीक से समझो। सुप्त-शक्ति को प्रकट होने दो। आँखें मूँद लो। धारणा करो। मन की ऊँची भूमिकाओं को पहचानो।

आप दूर की चीजें देख सकते हैं, दूर की वाणी सुन सकते हैं, सन्देश भेज सकते हैं, दूर रहने वाले लोगों का उपचार कर सकते हैं और पलक झपकने-भर में दूर-दूर तक पहुँच सकते हैं।

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