-रमेश चौहान

छत्तीसगढ़ राज्य का गठन: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित किया गया, जिससे यहां के निवासियों की वर्षों पुरानी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को मान्यता मिली। राज्य निर्माण की इस ऐतिहासिक घटना ने छत्तीसगढ़ के साहित्यिक परिदृश्य को भी एक नई ऊर्जा दी। इससे पहले, स्थानीय साहित्य मुख्यतः लोककथाओं, भजनों, और वाचिक परंपराओं तक सीमित था, लेकिन राज्य बनने के बाद कवियों और लेखकों को अपनी भाषा, संस्कृति, और सामाजिक मुद्दों को अधिक स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने का मंच मिला। इस ऐतिहासिक परिवर्तन ने साहित्यिक रचनाकारों को अपने आसपास के समाज, आदिवासी जीवन, और स्थानीय संघर्षों को अपनी कविताओं में जगह देने के लिए प्रेरित किया, जिससे छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य की नई धारा प्रवाहित हुई।
छत्तीसगढ़ी सेवा मण्डल रायपुर द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन का इतिहास’ के संदेश पृष्ठ में छत्तीसगढ के जनगीतकार श्री लक्ष्मण मस्तुरिया लिखते हैं- ”छत्तीसगढ़ी समाज के जन जागण के प्रवक्ता के रूप में ‘छत्तीसगढ़ी सेवक’ पत्रिका से ही सारे जनमानस को छत्तीसगढ़ी का आत्म बोध परिचय हुआ, यह अतिश्योक्ति नहीं एकमात्र सच्चाई है ।” यह कथन साहित्य और साहित्यकारों के शक्ति को प्रदर्शित करने के लिये पर्याप्त है ।
सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विरासत का संक्षिप्त परिचय
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक जड़ें उसकी लोकसंस्कृति, गीतों, कथाओं और धार्मिक परंपराओं में गहराई से समाई हुई हैं। लोककथाएं, पंडवानी, भरथरी, और करमा गीत जैसे प्रदर्शनकारी कला रूपों ने यहां के समाज की भावनाओं और संवेदनाओं को अभिव्यक्त किया है। लोक साहित्य में प्रकृति के प्रति श्रद्धा, सामाजिक समानता की भावना, और मानवीय रिश्तों की बारीक समझ देखने को मिलती है। राज्य बनने के बाद इस सांस्कृतिक विरासत को साहित्यकारों ने अपनी काव्य रचनाओं में पुनः जीवंत किया। कविता, गीत, दोहा, और मुक्त छंद के माध्यम से साहित्यकारों ने छत्तीसगढ़ की धरोहर को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करने का कार्य किया, जिससे राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता को मजबूती मिली।
छत्तीसगढ़ी साहित्य की प्राचीन और मध्यकालीन परंपरा
छत्तीसगढ़ी भाषा की जड़ें अपभ्रंश और लोकबोलियों में हैं। इसकी साहित्यिक परंपरा मौखिक रही, जिसमें लोकगीत, भजन, दोहे, और वीरगाथाएँ प्रमुख स्थान रखती थीं।
लोकगीत और भजन: छत्तीसगढ़ के भक्ति आंदोलन में कबीर, तुलसीदास और मीरा के साथ-साथ धनी धरमदास, गुरु घासीदास जैसे स्थानीय संत-कवियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। भक्ति साहित्य में दोहा, चौपाई और पद गाए जाते थे।
उदाहरण :
धनी धर्मदास के पद
“अरजी भंवर बीच नइया हो,
साहेब पार लगा दे।
तन के नहुलिया सुरती के बलिया,
खेवनहार मतवलिया हो।
हमर मन पार उतरगे,
हमू हवन संग के जवईया हो।
माता पिता सुत तिरिया बंधु,
कोई नईये संग के जवईया हो।
धरमदास के अरज गोसांई,
आवागमन के मिटईया हो।
साहेब पार लगा दे।।‘‘
–धनी धर्मदास जी
वीरगाथाएँ: हिन्दी साहित्य के वीरगाथा के परम्परा के अनुसार छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य में भी राजाओं, योद्धाओं और स्वतंत्रता सेनानियों के वीरदावली कविता प्रचलित थे।
उदाहरण:खैरागढ़ राज्य के चारण कवि दलराम राव राजा लक्ष्मी निधि राय के प्रशंसा में लिखे विरदावली-
लक्ष्मीनिधिराय सुनौ चित्त दै
गढ़ छत्तीस में न गढैया रही
मरदुमी रही नहीं मरदन के
फेर हिम्मत से न लड़ैया रही
पारंपरिक साहित्य: लोककथाएँ और किस्से, जैसे लोरिक-चंदा और भरथरी, पौराणिक कथाएं जैसे पण्डवानी काव्य रूप में प्रस्तुत किए जाते रहे हैं। छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य का विकास 19वीं और 20वीं शताब्दी में छत्तीसगढ़ी साहित्य ने लिखित रूप में आकार लेना शुरू किया। इस समय राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार, और शोषण के खिलाफ कविताएँ लिखी गईं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान छत्तीसगढ़ी कवियों ने जनजागरण के लिए ओजस्वी रचनाएँ लिखीं।
जैसे: सत्तावन के सत्यानाश–गिरवर दास वैष्णव
किस्सा आप लोगन ला, एक सुनावत हौ भाई।
अट्ठारह सौ सन्तावन के, साल हमर बड़ दुखदाई।
बादसाह बिन राज हमर, भारत मां वो दिन होवत रहिस।
अपन नीचता से पठान मन, अपन राज ला खोवत रहिस।
इन ला सबो किसिम से, नालायक अंगरेज समझ लेईन ।
तब विलायती चीज लान, सुन्दर-सुन्दर इन ला देहन।
छत्तीसगढ़ी नवजागरण: स्वतंत्रता के बाद साहित्य ने सामाजिक सुधार, दलित चेतना, और ग्राम्य जीवन को केंद्र में रखा।
उदाहरण:
मोर संग चलव जी, मोर संग चलव गा
गिरे थके हपटे मन, परे डरे मनखे मन
मोर संग चलव जी , मोर चलव गा (कवि: लक्ष्मण मस्तुरिया)
राज्य निर्माण के बाद साहित्यिक अभिव्यक्ति में वृद्धि
छत्तीसगढ़ के राज्य बनने के बाद साहित्यिक गतिविधियों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। साहित्यकारों को अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के अधिक अवसर मिले, और स्थानीय भाषा में साहित्य सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए नए मंच उभरे। समाचार पत्रों का सप्ताहिक मंच जैसे “मड़ई”, “पहट” जैसे मंचों ने स्थानीय लेखकों और कवियों को पहचान दिलाई। कवियों ने अपनी रचनाओं में राज्य के ग्रामीण जीवन, आदिवासी संघर्ष, और सांस्कृतिक विविधता को उजागर किया, जिससे एक सशक्त साहित्यिक परंपरा का विकास हुआ। सार्वजनिक कवि मंचों के माध्यम से डॉ. सुरेंद्र दुबे, मीर अली मीर, और डां. अशोक आकाश जैसे साहित्यकारों ने अपने पद्य साहित्य से सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक जागरूकता की लौ को प्रज्वलित किया। इस तरह, छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य ने राज्य के आत्मसम्मान और सांस्कृतिक गौरव की अभिव्यक्ति के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाई।
राज्य निर्माण के बाद पद्य साहित्य में नए प्रयोग और विषय
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद साहित्य में नए विषय, शैलियाँ और तकनीकों का प्रयोग हुआ। यह समय छत्तीसगढ़ी भाषा की अस्मिता, प्रकृति, प्रवासी जीवन, स्त्री विमर्श और डिजिटल युग के प्रभाव को समेटे हुए है।
नवगीत और अतुकांत कविता:
परंपरागत गीतों से आगे बढ़ते हुए, समकालीन विषयों पर नवगीत लिखे जाने लगे। छत्तीसगढ़ी नवगीत के प्रथम नवगीत संग्रह छत्तीसगढ़ी नवगीत के कोठी ‘मोर कलम शंकर बन जाही” से एक रचना उदधृत है-
घुना किरा
जइसे कठवा के
भ्रष्टाचार धसे हे
लालच हा अजगर असन
मनखे मन ला लिलत हे
ठाठ-बाट के लत लगे
दारू-मंद कस पियत हे
पइसा पइसा
मनखे चिहरय
जइसे भूत कसे हे
दफ्तर दफ्तर काम बर
टेक्स लगे हे एक ठन
खास आम के ये चलन
बुरा लगय ना एक कन
हमर देष के
ताना बाना हा
अपने जाल फसे हे
रक्तबीज राक्षस असन
सिरजाथे रक्सा नवा
चारो कोती हे लमे
जइसे बगरे हे हवा
अपन हाथ मा
खप्पर धर के
अबतक कोन धसे हे ।
-मोर कलम शंकर बन जाही, रमेश चौहान 2020 से
अतुकांत कविता में भी प्रयोग होने लगे, जहाँ भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति महत्वपूर्ण रही। नारायण लाल परमार की यह अतुकंत कविता प्रासंगिक है-
“अपन हाथ
अपन पॉंव
खोजत हे हवा
ए गॉंव, वो गॉंव
बपुरी लचार हे
तैं ह सिरतौन
चुपर डारे हस चंदा ला
अपन सरी देह मा
तब्भे अंधियारी हे!”
ग़ज़ल का प्रयोग:
छत्तीसगढ़ी ग़ज़लों में प्रेम, समाज, राजनीति जैसे विषय प्रमुखता से आए। छत्तीसगढ़ी गज़लों में मुकुंद कौशल के गज़ल की अपनी अलग ही बानगी है-
मन ले मन ला, बरही कोन डोर असन ।
कोन मया कर सकही तोला मोर असर ।
हॉंसत रहिही, रोही संगे कोन भला,
पाबे कतिहां संगवारी तैं मोर असन ।
बिन आरो के हिरदे भीतर आ करके
जिउरा मोर लुका के लेजे चोर असन ।
रेंगे लगथे मनखे जे पैडगरी मा,
आवत-जावत हो जथे ओ खोर असन ।
बात सिरावें, उहँचे कर दे बात खतम
बात लमाझन ‘कौशल’ तैंहर लोर असन
साहित्य शिल्प की कोई राज्य या देश की सीमा नहीं होती, जपानी भाषा के काव्य शिल्प हाइकु, सदोका, चोका आदि में भी छत्तीसगढ़ी रचनाएँ लिखी जाने लगीं। 2014 मेंं प्रकाशित ‘सुरता’ छत्तीसगढ़ी कविता के कोठी से एक हाइकु उदधृत है-
मया नई हे,
जोही तोर अंतस
पथरा जस
हाइकु पैटर्न की जपानी शैली की कविता सेदोका पर रमेश कुमार सोनी ने एक सेदोका संग्रह ‘फुलेरा’ प्रकाशित की है, इसके कुछ नमूने देंखे-
रूख बेचागे
डोंगरी हे डिंडवा
संसो धरे बइठे
कुदारी खोजे
पेड़ लगाहूँ कहे
वहू रेहन मं हे ।
अँगरी धरे
लइका रेंगे सीखे
पाछु ऑंखी देखाथे
सियान रोवै
कोन ल गोहराय
घरो-घर के किस्सा ।
इस नये दौर में प्रकृति और सांस्कृतिक अस्मिता पर कविताएं लिखि जाने लगी प्रसिद्ध गीतकार नंदराम ‘निशांत’ अपने छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह ‘मरजाद’ में लिखते हैं-
दाई-ददा के सेवा करे बर,
मैं सरवन बन जातेंव
तैं बन जाते उरमिला रे जोही,
मैं लक्षमण बन जातेंव
कतका दुख ला उठाा के कइसे,
हमला ओमन पोसिन हे
चिटिकन दुख के कारन मोर,
बिधाता घलो ला कोसिन हे
महमहवाये बर उनकर जिनगानी,
मैं मधुबन बन जातेंव …
जंगल, नदियाँ, त्योहार, और छत्तीसगढ़ी जीवनशैली काे अब नये ढंग से चित्रित किये जाने लगा अरुण निगम अपने छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह ‘छन्द के छ’ में लिखते हैं-
दया हे मया, सगा गॉंव मा
चले आ कभु, लीम के छॉंव मा
हवै जिंनगी का? इहॉं जान ले
गरग आय सिरतोन, परमान ले
सचाई चघे हे, सबो नार मा
छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य अपनी प्राचीन लोक परंपराओं से लेकर आधुनिक नवाचारों तक लगातार समृद्ध होता रहा है। राज्य बनने के बाद इसमें न केवल नई विधाओं का समावेश हुआ, बल्कि छत्तीसगढ़ी भाषा को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर पहचान भी मिली। साहित्यकारों ने अपनी सृजनशीलता से छत्तीसगढ़ की संस्कृति, प्रकृति और संघर्ष को जीवंत रखा है, जिससे यह साहित्यिक परंपरा और अधिक सशक्त बनी है।
छत्तीसगढ़ी साहित्य में इंटरनेट का योगदान-
छत्तीसगढ़ राज्य का उदय और इंटरनेट और सोशमीडिया का विस्तार लगभग साथ-साथ ही हुआ इसका लाभ छत्तीसगढ़ी साहित्य को हुआ । छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रचार-प्रसार में कई वेबसाइट्स, ब्लॉग्स और फेसबुक पेज महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
1. गुरतुर गोठ: यह छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य को समर्पित एक प्रमुख वेबसाइट है। यहां छत्तीसगढ़ी कहानियाँ, कविताएँ, लेख और समाचार प्रकाशित होते हैं, जो पाठकों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति से जोड़ते हैं।
2. सुरता: ‘सुरता’ छत्तीसगढ़ी साहित्य और संस्कृति पर केंद्रित एक अन्य महत्वपूर्ण वेबसाइट है। यहां साहित्यिक रचनाएँ, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास से संबंधित सामग्री उपलब्ध है।
3. छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच (फेसबुक पेज): यह फेसबुक पेज छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों और पाठकों के बीच संवाद का माध्यम रहा है। यहां साहित्यिक रचनाएँ साझा की जाती रही हैं, पद्य साहित्य के नये पौध तैयार करने में इस पेज की अहम भूमिका रही है, यहां ‘पागा कलमी’ नाम से कविताओं का प्रतियोगिता आयाजित की जाती थी, जिसमें आज के स्थापित अनके कवि हिस्सा लेते रहे, इसमें से अधिकांश प्रतिभागी ‘छंद के छ’ नामक वाह्टशॉप समूह में सम्मिलित हुए ।
4. ‘छंद के छ’ (वाह्टशॉप समूह )– छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य में यह मील का पत्थर साबि हुआ । प्रमुख छंदकार श्री अरुण निगम द्वारा संचालित इस समूह छत्तीसगढ़ के लगभग आधे कवि कभी न कभी इस समूह जरुर जुड़े रहे । छंदबद्ध कविताओं की रचना में इस समूह की अद्वितिय योगदान है ।
4. ब्लॉग्स: कई व्यक्तिगत ब्लॉग्स भी हैं जहां लेखक छत्तीसगढ़ी साहित्य, संस्कृति और भाषा पर अपने विचार और रचनाएँ साझा करते हैं। ये ब्लॉग्स साहित्यिक विमर्श को समृद्ध करते हैं और पाठकों को नए दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
योगदान और गतिविधियाँ: ये सभी प्लेटफ़ॉर्म छत्तीसगढ़ी साहित्य के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे न केवल साहित्यकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करने का मंच प्रदान करते हैं, बल्कि पाठकों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति और भाषा से जोड़ने में भी सहायक हैं। इनके माध्यम से साहित्यिक चर्चाएँ, कवि सम्मेलन, कार्यशालाएँ और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
इन ऑनलाइन माध्यमों के माध्यम से छत्तीसगढ़ी साहित्य को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है, जिससे भाषा और संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन हो रहा है।
वर्ष 2000 के बाद प्रकाशित प्रमुख पद्य संग्रह
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ी कविताओं का एक बाढ़-सा आ गया, ऐसे-ऐसे लोग छत्तीसगढ़ी कविता लिखने का प्रयास करने लगे जो पहले छत्तीसगढ़ी बोलने से कतराते थे, जिनको छत्तीसगढ़ी भाषा का उचित ज्ञान भी नहीं था, वे अपनी हिन्दी कविताओं को तोड़-मरोड़ कर छत्तीसगढ़ी कविता के रूप में प्रस्तुत करन लगे । 2000 से 2005 तक का समय छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य के एक संधि बेला रहा है, जहां पूर्व से स्थापित कवि जैसे लक्ष्मण मस्तूरिया, मुकुंद कौशल, रामेश्वर वैष्णव, रामेश्वर शर्मा, सुरेन्द्र दुबे जैसे कवि और अधिक ऊर्जा से छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य में लगे गये वहीं नौशेखिये लाेग भी हाथ अजमाने लगे, इस बीज असंख्य प्रतिभावान कवियों से भी हमारा परिचय हुआ ।
वर्ष 2000 के बाद प्रकाशित पद्य साहित्य की बात की जाये तो मैं मानता संपर्ण प्रकाशित छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य में 90 प्रतिशत प्रकाशन 2000 के बाद ही हुये इसकी सूची बहुत लंबी है । चावल के हांड़ी जैसे कुछ दाने चुने जाते है उसी प्रकार कुछ कृतियों का ही चयन संभव है । जिसका चयन नहीं किया जा रहा उपेक्षणीय है ऐसा भी नहीं ।
गम्मत- मनोज श्रीवास्तव
सन् 2011 में प्रकाशित मनोज श्रीवास्तव का काव्य संग्रह ‘गम्मत’ अपने शीर्षक के कारण सुर्खियों में रहा यद्यपि यह विशुद्ध छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह नहीं इसमें कवि ने अपने छत्तीसगढ़ी और हिन्दी दोनों भाषाओं की हास्य व्यंग्य की रचनायें प्रकाशित की है । यह एक नवोदित कवि का काव्य पाठकों से पहला परिचय था, फिर भी इसे अच्छा प्रतिसाद मिला । इस काव्य संग्रह शीर्षक कविता इस प्रकार है-
ए जिनकगी के गोठ,
अडबड लगथे छोट
रहे बर छप्पर,
पक्की होय के खप्पर,
तन बर कपड़ा,
खाय बर रोटी,
इही म सिरागे,
जिनगी के गोटी,
का लेके आना,
अउ का लेके जाना,
अपन नोहय कुछु,
सबो जिनिस बहाना,
बने-बने विचार म,
दुनिया म रहिथे सम्मत,
मिल-जुल के रहव संगी,
हमर जिनगी बनही ‘गम्मत’
छन्द के छ -अरुण निगम
सर्वप्रिया प्रकाशन से 2015 में प्रकाशित श्री अरुण निगम की छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह एक प्रेरक ग्रंथ सिद्ध हुआ । इस किताब के नाम पर ही ‘छन्द के छ’ वाह्टशॉप ग्रुप का संचालन हो रहा है, जो आज तक सैकड़ों प्रबुद्ध छन्दकार को जन्म दिये है । इस किताब अपने भाव पक्ष से अधिक कलापक्ष के कलात्मक निरुपण के लिये जाना गया । कवितायें प्रारंभ करने के पूर्व कवि ने ‘येहू ल गुनव….’ शीर्षक से छन्द शिल्प का विस्तार से वर्णन किया है और यह भाग कवि के काव्य भाग पर भारी रहा है यही कारण के इस किताब के पाठक कवि के कविताओं के भाव से अधिक छन्द विधान समझते रह गये, और लोगों कौतुहल, जिज्ञासा पैदा किया स्वयं छन्द सीखने की ललक पैदा की और आज सैकड़ो लोग सफल रहे ।
इस किताब में कुल 76 कविताएं प्रकाशित जो किसी न किसी छन्द से आबद्ध है । दोहा, सोरठा, रोला, कुण्डलियां, उल्लाला जैसे बहुतेरे मात्रिक छंद में लिखे गये है तो वहीं विभिन्न प्रकार सवैया और घनाक्षरी वार्णिक छंद में भी कवितायें संग्रहित है, कुल मिलाकर इसमें 50 प्रकार के छन्दों में कवितायें हैं । सभी छन्दों का विधान अपनी कविता स्पष्ट किया इसलिये यह किताब काव्य संग्रह से अधिक छन्द शास्त्र बन पड़ा है ।
किसी भी काव्य में कला, शिल्प चाहे जितना हो, उस कविता का महत्व तो उसके भाव कथन पर ही है । इस काव्य संग्रह में कवि ने विभन्न सामाजिक मुददों, प्रकृति, संस्कार, विज्ञान सभी विषयों पर कलम चलाई है । महंगाई और बेरोजगारी सर्वकालिक समस्या पर इनकी एक रचना देखिये-
खर्चा रुपैय्या (विधाता छंद)
अजी खर्चा रुपैय्या हे, कमाई चार आना हे ।
न बंदोबस्त रोटी के, न रोजी के ठिकाना हे ।।
कहॉं जाबो कहॉं खाबो, इहॉं बैरी जमाना हे ।
फ़जीता हे आगा संगी, हमेसा जोजियाना हे ।।
चकमक चिनगारी भरे -बुधराम यादव
चकमक चिनगारी भरे, छत्तीसगढ़ी सतसई दोहा संग्रह, मेरे ‘दोहा के रंग’ (प्रथम छत्तीसगढ़ी दोहा संग्रह) के बाद प्रकाशित (2016) प्रमुख दोहा संग्रह है । यह दोहा संग्रह हिन्दी साहित्य स्वर्ण युग में प्रचलित सतसई ग्रंथ का अनुकरण इस कृति में कवि ने 700 दोहों का संग्रह प्रस्तुत किया है और पुरौनी (कुछ छूट के रूप में देना) के रूप 7 और दोहे प्रस्तुत किये इस प्रकार इसमें 707 दोहे प्रकाशित है । यह कृति छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध बनाने के यज्ञ में एक महत्वपूर्ण समिधा है । इस कृति में कवि ने सुमिरन दोहे से काव्य प्रारंभ कर भारतीय परम्परा का निर्वाहन किया फिर साहित्य के दोहे देकर अपनी काव्य आहूति दी है । कवि ने जहां एक ओर इस कृति में महतारी-नारी, गॉंव, समे (समय), जंगल-पर्यावरण, राजनीति, महंगाई आदि विषयों पर दोहे लिखें हैं वही अहंकार, संतोष, मन, पुरसारथ (पुषार्थ) आदि विषयों पर भी दोहे लिखें । एक अनुभवी कवि के रूप श्री बुधराम यादव ने अपने अनुभव का पिटारा दोहे के रूप में पाठकों को भेंट किये हैं । कुछ दोहें आप भी देखें-
करम बिना अनुचित लगय, श्रद्धा भर के गोठ ।
दौड़त आथे सुफल हर, करमइता घर पोठ ।।
सोवत बेरा तो करव, खुद ले तीन सवाल ।
फॉंदा ‘बुध’ कै ठन रचे, कै ठन काटे जाल ।।
पोथी पतरा का पढ़य, का मंदिर तक जाय ।
मुक्ति अहम ले जब मिलय, मोक्ष दउड के आय ।।
मरजाद – नंदराम यादव ‘निशांत’
नंदराम ‘निशांत’ एक सुमधुर गीतकार है, 2014 इनकी छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह ‘मरजाद’ प्रकाशित हुआ । इस कृति में इनके कई मधुर गीत, गजलें शामिल है । इस कृति नंदराम जी परम्परा को प्रोन्नत करते हुए आधुनिकता की आहट को अंगीकार करते है । इस संग्रह सामाजिक भूगोल का दर्शन होता है । करेजा हिन्दूस्तान नामक शीर्षक कवि छत्तीसगढ़ को भारत का हृदय निरुपित करते है, सुख के ओरवाती में मेहनत करने का आव्हान है । इनके संपूर्ण रचनाओं के अवलोकन से इसकी कृति अन्य कृतियों से इस बात में अलग हैं इनके द्वारा प्रयुक्त भाषा ठेठ छत्तीसगढ़ी है, छत्तीसगढ़ी के विलुप्त हो रहे शब्दों को सहेजने कवि ने अथक प्रयास किया है । शीर्षक कविता मरजाद में कवि एक किसान के सपनों और टूटते हुए मकान का चित्रण करते हुए एक करुण दृश्य प्रस्तुत करते हैं –
काल के हिस्सा ला इरी, आज लेगे रे ।
तोर बांटा के रोटी ला, बाज लेगे रे ।
तैंहा मर-मर बनाये, संडइला के कुरिया
गर्रा पानी अउ ओला, गाज लेगे रे
बड़ा जुरमी निकलीस ओ महाजन
मुठा भर चांउर मा सइघो, लाज लेगे रे
होके अंधरा, बेरा के झपेटा
सुघ्घर-सुघ्घर सपना, अंताज लेगे रे
चगल के छोक्ता, कर देहे रे खवइया
बांचे-खोंचे ला पंचइती, राज लेगे रे
छन्द -बिरवा – चोवाराम ‘बादल’
सन् 2018 में चोवाराम बादल की कृति ‘छन्द बिरवा प्रकाशित हुआ । यह कृति ‘छन्द के छ’ की उपज है और शिल्प के आधार पर इसकी अनुकृति भी । छन्द-बिरवा न केवल एक छनदबद्व रचना के लिये जाना गया अपितु छत्तीसगढ़ी के सुगठित शब्द विन्यास के लिये भी अपनी छाप छोड़ने में समर्थ रहा । रस और अलंकार का प्रयोग कभी-कभी रचनाओं में अनायास आ जाते हैं तो कभी-कभी कवि सद्प्रयास से इसका प्रयोग करता है, इस कृति इस दिशा में कवि का सद प्रयास दिखता है । इनके कथ्य पारंपरिक न होकर नये कलेवर लिये हुय हैं, एक उदाहरण देखें-
कचरा इहां, कचरा उहॉं, कचरा ह कचरा फेंकथे ।
कचरा हटा घर के अपन, बाहिर गली मा लेगथे ।।
घुरुवा सहीं दिखथे शहर, कुढवाय कचरा चौंक मा ।
घिन घिन अबड़ जी लागथे, मॉंछी परे जस छौंक मा ।।
जयकारी जनऊला – कन्हैया साहू ‘अमित’
जयकारी जनऊला सन् 2021 में प्रकाशित कन्हैया साहू जी का एक छत्तीसगढ़ी पहेली संग्रह है । जनऊला (पहेली) हमारे छत्तीसगढ के परम्परा एक हिस्सा भी रहा है । जनऊला विशेषकर बच्चों के लिये प्रेरणकारी और आनंददायी होता है, इसलिये इस किताब को बाल साहित्य का भी दर्जा प्राप्त है । इस कृति में 1100 छत्तीसगढ़ी जऊला जयकारी छंद, जिसे चौपई छंद भी कहते हैं, जो चौपाई छंद से भिन्न होता में निबद्ध है । इसके प्रत्ये पहेली बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के लिये भी रुचिकर है । कु बानगी देंखें-
बिन पानी के ग कुऑं चार । लाली करिया अउ उजियार
रानी अउ अठृठारा चोर । जिरमुल जम्मों हे चिरबोर (कैरम बौर्ड)
लाली-लाली कुरता लाल । हरियर फीता फभे कमाल
रैंधनी घर मा एखर राज । नॉं बतावव तुरते आज (टमाटर)
संगे आवय संगे जाय । पानी ला बहुते डर्राय
हरय पॉंव के ये रखवार । अँकड़ा मा ये हे बेकार (पनही-जूता)
बनै बॉंस के सींका डार । होय गोलवा चाकर मार
बर बिहाव मा भारी मॉंग । बरी सुखो ले छानी टॉंग (पर्रा)
हीरा सोना खान के – मनीराम साहू मितान
‘हीरा सोना खान के’ वीर नारायण सिंह के जीवन पर लिखे मनीराम साहू का एक खण्ड़ काव्य है । वीर नारायण सिंह के जीवन चरित्र का चित्रण वीर (आल्हा) छंद किया कवि के सजगता का परिचयाक है । वंदना प्रकरण के बाद प्रमुख छंद आल्हा से शुरूवात करते हुए गुरुवंदना, दाई-ददा (माता-पिता) वंदना, जन्म भूमि की वंदना करते हुए छत्तीसगढ़ के सभीप्रमुख तीर्थ की वंदना की है, सभी प्रमुख नदियां को प्रणाम करना कवि के छत्तीसगढ़ के प्रति प्रेम का निरुपण है । इस कृति में आल्हा छंद के अतिरक्त 20 प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है ।
अपने इस कृति के माध्यम से कवि ने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि राष्ट्रवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद कहीं ऊपर है । अंग्रेजों द्वारा पूरे देश में किये गये अत्याचार का वर्णन सजिव रूप से किया गया है । अत्याचारीयों के अत्याचार से जनता की दशा का यह करुण गाथा दृष्टव्य है-
करे लगिन अब शोशन गोरा, अउ बढ़गे गा अत्याचार ।
हाथ बात सब उँकरे होगे, मचे लगिस गा हाहाकार ।।
हस्त कला उद्योग नँगागे, अउ छिनगे देसी बैपार ।
रिबि रिब सब होगे शिल्पी, एके लाँघन दू फरहार ।।
धरम घलो ला बदले लागिन, बरपेली सब ला मनवायँ।
मन मरजी सब बुता करयाँ जी, ककरो बरजे नइ बरजायँ ।।
मोर कलम शंकर बन जाही-रमेश चौहान
‘मोर कलम शंकर बन जाही’’ 2020 में प्रकाशित छत्तीसगढ़ी नवगीत के कोठी (नवगीत संग्रह) है । संभवत: यह छत्तीसगढ़ी का प्रथम नवगीत संग्रह है । इस पुस्तक का श्री गणेश ‘नवगीत एक परिचय’ आलेख से हुआ है फिर नवगीत कैसे लिखे इसे संक्षिप्त में समझाया गया है । नवगीत संकलन होने के कारण इनके नवीनता और वैज्ञानिक दृिष्टकोण से आच्छािदत है । परम्परागत विषय को भी एक नवीन कलेवर में प्रस्तुत करने का प्रयास है । शीर्षक नवगीत का ताना-बाना देखिए-
पी के तोर पीरा,
मोर कलम,
शंकर बन जाही
तोर ऑंखी के ऑंसू,
दवाद मा भर के,
छलकत दरद ला,
नीप-जीप कर के
सोखता कागज मा,
मनखे मन के,
अपन स्याही छलकाही
तर-तर तर-तर पसीना तैं,
दिन भर बोहावस
बिता भर पेट ला धरे
कौरा भर नई खावस
भूख के अंगरा मा
अंगाकर बन
ये कड़कड़ ले सेकाही
पी के तोर पीरा,
मोर कलम,
शंकर बन जाही
प्रमुख छत्तीसगढ़ी साहित्यकार और उनका योगदान
जैसे कि यह कहा जा चुका है कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद से छत्तीसगढ़ी भाषा कवियों अनापेक्षित वृद्धि हुई । मेरे अनुमान के अनुसार छत्तीसगढ़ के प्रत्येक जिलों सैकड़ो छत्तीसगढ़ी भाषा के कवि है और सभी चर्चा करना संभव नहीं है । ऐसे तो मंचीय कवि समाज के बीच ज्यादा जाने पहचाने जाते हैं किन्तु एक ऐसा बहुत बड़ा वर्ग भी जो साहित्क सृजन में चुपचाप लगे हुये और ऐसे लोग भाषा शिल्प की कसौटी में मंचीय कवियों से अधिक बेहतर हो सकते हैं ।
लक्ष्मण मस्तुिरया, दानेश्वर शर्मा, विनय पाठक, मुकुंद कौशल, सुरेन्द्र दुबे, रामेश्वर वैष्णव, रामेश्वर शर्मा, चितरंजन कर, डॉ. निरुपमा शर्मा,डॉं. पी सी लाल यादव, सुशील यदु, सीताराम साहू जैसे बहुत से कवि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण पर हमें उपहार स्वरूप प्राप्त हुये जो छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद भी छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य के पौध को अपनी लेखनी के नीर से सिंचते आ रहे हैं । छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के बाद कुछ पुराने कवियों को विशेष पहचान प्राप्त हुआ इस श्रेणी में मीर अली मीर का नाम लिया जा सकता है, जो आज आमजनो के जुबान पर है उनके ‘नंदा जाही का रे’ कविता की प्रसिद्धी इतनी हुई कि इसे गीत के रूप ढाला गया ।
नामी लोग को सभी किसी न किसी रूप में जानते ही है, मैं कुछ ऐसे कवियों की चर्चा करना चाहूंगा जो गुमानामी के चादर ओढ़ चुपचाप अपनी लेखनी रूपी मथानी से श्रेष्ठ काव्य रूपी घृत का मंथन कर रहे हैं । ऐसे ही एक कवि है राजकमल जी राजपूत जो लगातार छत्तीसगढ़ी भाषा के सेवा में अनवरत लगे हुये । ये छत्तीसगढ़ी मुक्तक के लिये जाने जाते हैं इनकी एक कविता बहुत प्रचलित हुआ है किन्तु दुख की बात है इस कविता के साथ इस कवि का नाम प्रचलित नहीं हो पाया क्योंकि कुछ लोग इनकी कविता को अपने नाम से सोशल मीडिया में चलाने के कुलसित प्रयास किये तो कुछ लोग अनाम रूप से इस कविता का सोशल मीडिया में वायरल किये । यह वायरल कविता है-
जिनगी के तार ल जोर के तो देख,
माटी संग मया ल घोर के तो देख,
गुरतुर हो जाही संगी भाखा ह तोरो
छत्तीसगढ़ी म थोकिन बोल के तो देख…
वर्ष 2000 के बाद सक्रिय प्रमुख कवियों का परिचय
अरुण निगम– अरुण निगम छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य में छंद विधा को व्यापीकरण करने के लिये जाने जाते है । ‘छन्द के छ’ आपके एक मात्र काव्य संग्रह है किन्तु इसके नाम पर आपने वाट्सएप पर चलाये जा रहे पाठशाला से अनेक छंदकारों का जन्म हुआ है, आप छंद गुरु के नाम जाने जाते हैं ।
श्रीमती आशा देशमुख- श्रीमती आाशा देशमुख एक गंभीर चिंतनशील प्रकृति की कवि है । इनके लेखन शैली में शब्दों को तौल कर प्रयोग किया जाता है । आप हिन्दी और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं में लेखनी चला रही हैं । ‘छन्द चंदैनी’ आपकी प्रमुख कृति है । आप छन्द के छ के प्रमुख पौध हैं ।
डॉ. अशोक आकाश- डॉं. अशोक आकाश एक मंचीय कवि होने के साथ-साथ सतत् लेखनशील भी हैं । आप हिन्दी और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं समानरूप से लेखन कार्य करते हैं। ‘आपरेशन एक्के घा’ का आपका नवीतम छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह है ।
बुधराम यादव- बुधराम यादव छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य के लिये एक जाना पहचाना नाम है । आप छन्द मुक्त और छन्दबद्ध दोनों प्रकार की रचनायें करते आ रहे हैं । आपकी प्रमुख कृतियां अँचरा के मया(गीत-काविता), मोर गाँव कहाँ सोरियावत हे, सुखवन्तिन (छत्तीसगढ़ी लोक कथा), चकमक चिंगारी भरे (छत्तीसगढ़ी सतसई दोहा संग्रह),मनुष मोल के रखवारी(छंदबद्ध) है ।
बोधन राम निषाद राज”विनायक”- बोधन राम साहू संघर्षो के अग्नि में तप कर कुंदन हो गये हैं । बाल्यकाल से गीत कविता के रूचि रखने वाले साहू सोशल मीडिया के दौर में इससे छंद, गज़ल लिखना सीखें और अपना नाम स्थापित करने में सफल भी हुये । उनकी प्रमुख कृतियाें में मे मोर छत्तीसगढ़ के माटी – गीत संग्रह, भक्ति के मारग – भजन संग्रह, अमृत ध्वनि छंद संग्रह, छंद कटोरा, हरिगीतिका छंद संग्रह, आल्हा छंद जीवनी – 36 साहित्यकारों का जीवन परिचय शामिल है ।
चोवा राम वर्मा ‘बादल ‘- आप विद्यार्थी जीवनकाल से ही छंदों को प्रति रूचि लेने लगे थे, कुछ अनगढ़ प्रयास भी करने लगे तो किन्तु बाद में मेरे फेसबुक पेज छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच पागा कलगी प्रतियोगिता में फिर बाद में छंद के छ की कक्षा में लगभग सभी छंद विधान का अथक अध्ययन कर आज एक छंदकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं । आप हिन्दी और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं में गद्य एवं पद्य दोनों विषयों में महारत हासिल किये हुये हैं । आपकी प्रमुख कृतियां रौनिया जड़काला के (कविता संग्रह ), छंद बिरवा ( छंद संग्रह ), जुड़वा बेटी( कहानी संग्रह ), हमर स्वामी आत्मानंद (चंपू काव्य), बहुरिया (कहानी संग्रह), श्री सीताराम चरित(महाकाव्य), माटी के चुकिया (छत्तीसगढ़ी में बाल कविता), मैं गांव के गुड़ी अंव (निबंध संग्रह और, ताना-बाना है ।
कन्हैया साहू ‘अमित’- कन्हैया साहू छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रति समर्पित व्यक्तित्व हैं । एक प्रखर विद्वान, छंदकार, और चिंतक, अध्ययनशील व मननशील कवि है आपकी कवितओं एक गहराई देखी गई है । आपको ‘छंद श्री’ एवं भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति साहित्य सम्मेलन 2025 में कन्हैया साहू अमित” को बाल साहित्य विभूषण की मानद उपाधि से विभूषित किया गया है। जयकारी जनउला, फुरफुन्दी, बाल काविता संग्रह. छत्तीसगढ़ के छत्तीस रतन. छत्तीसगढ़ी खेलगीत संग्रह, आवव जानिन जनऊला, छत्तीसगढ़ के छत्तीस भाजी आपकी प्रमुख कृतियां हैं ।
डॉ. निरूपमा शर्मा – महान कवियत्री महादेवी वर्मा को अपने आदर्श माननेवाली डॉ. निरुपमा शर्मा को छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला साहित्यकार होने का दर्जा प्राप्त हैं, 1968 में प्रकाशित पतरेंगी (काव्य संग्रह) किसी महिला द्वारा प्रकाशित पहली छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य है। इनकी अन्य कृतियों में ,रितु बरनन (काव्य संग्रह) और दाई खेलन दे (काव्य संग्रह) सम्मिलित है ।
राजकुमार चौधरी “रौना” – राजकुमार चौधरी एक प्रतिभावान कवि है । छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य में एक गजलकार के रूप में आप स्थापित हो रहे हैं । आपने छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य को माटी के सोंध (छत्तीसगढ़ी काव् संग्रह),पाँखी काटे जाही. गजल संग्रह) . छतनार, बोल रे मिट्ठू बोल, (छत्तीसगढ़ी ब्यंग संग्रह) और दिया बुतागे बिना बड़ोरा, छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह जैसे काव्य कृतियां भेट की है ।
शकुंतला शर्मा – शकुंतला शर्मा छत्तीसगढ़ी कवियत्रियों के प्रथम पंक्ति की कवित्री है, आप एक विद्वषी और संस्कृत के भाषाविद भी है । आप संस्कृत साहित्यों का हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में अनुवाद प्रस्तुत करती रहती हैं । आपने छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य को चंदा के छाँव में; ‘कोसला’ (कविता-संग्रह); ,बूड मरय नहकौनी दय (गजल-संग्रह), ‘चंदन कस तोर माटी हे (कविता), ढाई-आखर’ (कविता-संग्रह) और,छंद के छटा-छंद संग्रह भेंट की है ।
छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ
1. भाषा और शैली की विशेषताएँ
स्थानीय बोली, मुहावरे की सहज अभिव्यक्ति- छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य में स्थानीय बोली, मुहावरे की सहज अभिव्यक्ति की प्रधानता सहज ही मिल जाते हैं जैसे-
चारो कोती सुन्ना-सुन्न,हरियर मदक मतौना ।
आगी अंगरा उलचय भोंभरा, सांवन बने छतौंना ।। (मऊहा जल- डॉं चन्द्रशेखर यादव)
मूड़ के नाव कपार हे,
जिहां देखबे उहां अत्याचार हे ।
बताबे ता अपन निंदा दूसर के हांसी
लबरा के नौं नांगर खेत हे ना खार हे ।। (मूड़ के नाव कपार-डॉं. एस. एल. गंधर्व)
लोकसंस्कृति से जुड़ी शब्दावली का प्रयोग- छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य एक सबसे बड़ी विशेषता है कि इनकी कविताओं में लोकसंकृति के शब्द अनायास ही आ जाते हैं, जो कविताओं को सहज और प्रभावी बनाती है।
जैसे-
सुरसा कस बाढ़त मँहगाई, आईस त फेर कहॉं ले आईस?
सगरी जगत अचँभौ अमाईस, समझ सुखायिस बुध हजाईस
अरे महँगाई कहॉं ले आईस …………. (देखत जुड़ाये नैना-डॉं जगदीश कुलदीप)
सरल, प्रवाहमयी भाषा- छत्तीसगढ़ी कविताओं में भाषा सरल, प्रवाहमयी होती है, जो आमजन के मन को छूने में सक्षम होती है ।
जैसे-
छत्तीसगढ़ के तीज तिहार । खुशी मनाये घर परिवार
सावन म हरेजी आथे । जुरमिल के सब तिहार मनाथे (ओंजरा भर फूल- गुलाब सिंह कंवर)
तुकांत और अतुकांत दोनों प्रकार की कविताओं का प्रचलन– यद्यपि छत्तीसगढ़ी कविताओं तुकांत कविताओं की भरमार है किन्तु नये दौर में अतुकांत कविताएं दृष्टव्य हैं ।
जैसे-
हंसत हे त एके ठन तारा,
करिया करिया चुंदी मा,
गुथाय फूँल गजरा असन,
मनमोहनी के रूप संवारत (सुरता-रमेश चौहान)
छंदबद्ध कविता, मुक्तछंद, ग़ज़ल, मुक्तक जैसी विभिन्न शैलियों का प्रयोग- 2000 के बाद के छत्तीसगढ़ी कविताओं के अवलोकन स्पष्ट है आज की कवितायें शिल्प संकीर्णता से बाहर आकर स्वछंद विचरण कर रही है, जहां पहले ज्यादातर कवितायें केवल तुकबंदी होती थी आज शिल्प की कवितायें दृष्टिगोचर होती है ।
छंदबद्ध कविता-
चोला माटी के बने, झन कर तैं अभिमान ।
मोर मोर करथस अबड़, हावय झूठी शान ।।
हावय झूठी शान, अभी नइ समझे हावस ।
का लेके तैं आय, नहीं कुछु ले के जावस ।।
पुण्य कमा ले थोर, अभी बरजत हँव तोला ।
पानी मा घुर जाय, बने माटी के चोला । (अजय साहू ‘अमृतांशु’)
मुक्त छंद-
एक मुसवा के
हाथ मा लाडू
काबर के
ओहा गनेस के
सवारी हे
ए नीति अउ नियाव
सरकारी हे…. (डॉं माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’)
ग़जल-
मिल सबो संग मा तैं हॉंस के
का हे बिस्वास ये सॉंस के
बोल मिठ मिठ सबो संग मा तैं
जइसन बंसी बजय बॉंस के
कोन सँहुराही हम ला इहॉं
फूल हन संगी हम कॉंस के (लतीफ खान ‘लतीफ’)
मुक्तक-
मिरचा गोंदली अब चरपरावय नहीं,
धनिया बारी घलोक महमहावय नहीं,
गोभी अऊ आलू रक्सा बरोबर बाढ़थे
बेंदरा मन घलोक ओला खावय नहीं (डॉं संजय दानी)
2. लोकजीवन, प्रकृति, और सामाजिक मुद्दों का चित्रण
ग्रामीण जीवन, कृषि, पर्व-त्योहार और लोकसंस्कृति का व्यापक चित्रण- छत्तीसगढ़ी कविताओं का प्राण है गॉंव । ग्रामीण जीवन, कृषि, पर्व-त्योहार और लोकसंस्कृति का व्यापक चित्रण छत्तीसगढ़ी कविताओं में अनायास ही दिख पड़ते हैं-
मूँड़ म खुमरी कमरा ओढ़े,
खा के चटनी बासी
नॉंगर मुठिया धरे नँगरिहा,
डोली म करत हे बियासी । (ओरिया के छॉंव- मनीराम साहू ‘मितान’)
छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता, नदियाँ, जंगल, पर्वत और वन्यजीवों की झलक-प्रकृति वर्णन, ऋृतु वर्णन किसी भी भाषा के साहित्य का अनिवार्य अंग है, तो भला छत्तीसगढ़ी भाषा इससे अछूता कैसे रह सकता है-
जंगल ले हवय हावा पानी ।
जंगल ले सुघ्घर जिनगानी
आनी-बानी के रूख राई ।
हावँय अब्बड़ के सुखदाई ।। (विरेन्द्र कुमार साहू)
सामाजिक कुरीतियों, आर्थिक विषमताओं, मजदूरों और किसानों के संघर्ष को उजागर करती कविताएँ– सामाजिक कुरीतियों, आर्थिक विषमताओं, मजदूरों और किसानों का संघर्ष काव्य के नाड़ी में प्रवाहित रक्त है-
आगा भइया दुखिया हस ते सुन
आ बइठ के रोबो
अपने अपन हासी आही मइल ला धोबो (जय हो छत्तीसगढ़- ललित पटेल)
3. आधुनिकता और परंपरा का समन्वय
पारंपरिक लोककाव्य शैली को बनाए रखते हुए आधुनिक विचारों का समावेश- समय की धारा अनवरत प्रवाहमान है, इसके घाटों में नाना प्रकार के आयाम बनते-बिगड़ते रहते हैं । धारा में बहने है तो धारा के साथ चलना ही होगा, काव्य भी अपने आप को समय अनुकूल ढाल ही लेती है, यही कारण है पारंपरिक लोककाव्य शैली को बनाए रखते हुए आधुनिक विचारों का समावेश काव्य में आ ही जाता है-
रकसा मन दिन दिन बाढ़त हे,
सतवंता मन सत छाड़त हे
काटे कोन कलेस ला?
का होगे रे सियान मोर देस मा? (डॉं. जीवन यदु ‘राही’)
डिजिटल युग में छत्तीसगढ़ी साहित्य का प्रसार ब्लॉग, फेसबुक, यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन माध्यमों से– आधुनिकता और डिजिटल युग के इस दौर में साहित्य पाठकों प्रिंट मीडिया से अधिक इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से होने लगा है । अनेक साहित्यकार अपनी रचना वाटशएप, फसेबुक, ब्लॉंग, यूट्यूब जैसे माध्यमों से प्रसारित कर रहें । आज कल कवि अपनी कृति ई-बुक के माध्य से भी प्रकाशित कर रहे हैं ।
छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य का प्रभाव और महत्व
साहित्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ी संस्कृति का प्रचार-प्रसार
- छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य ने लोकसंस्कृति, लोकगीत, रीति-रिवाज, लोककथाओं और परंपराओं को जीवित रखा है।
- विभिन्न साहित्यिक मंचों, कवि सम्मेलनों और साहित्यिक पत्रिकाओं के माध्यम से छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रचार हुआ है।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
- छत्तीसगढ़ी साहित्य को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी है, जिससे इसे अन्य भारतीय भाषाओं के समकक्ष लाने में मदद मिली है।
- डिजिटल माध्यमों (ई-बुक, ब्लॉग, यूट्यूब) के जरिए छत्तीसगढ़ी साहित्य वैश्विक स्तर तक पहुँचा है।
युवा पीढ़ी पर प्रभाव
- नई पीढ़ी के लेखक और कवि छत्तीसगढ़ी भाषा में लेखन कर रहे हैं, जिससे भाषा का संरक्षण और संवर्धन हो रहा है।
- सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से युवा साहित्यकार अपनी रचनाएँ साझा कर रहे हैं, जिससे साहित्य की लोकप्रियता बढ़ी है।
छत्तीसगढ़ी साहित्य: चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ
छत्तीसगढ़ी साहित्य, विशेषकर पद्य विधा, ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। हालांकि, बदलते सामाजिक, तकनीकी और सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस आलेख में छत्तीसगढ़ी साहित्य के समक्ष आने वाली चुनौतियों, डिजिटल युग में इसके भविष्य और इसके प्रचार-प्रसार के लिए सुझावों पर चर्चा की गई है।
1. छत्तीसगढ़ी साहित्य को सामने आने वाली चुनौतियाँ
क. पाठकों की घटती रुचि
- आधुनिक युवा पीढ़ी तेजी से अंग्रेजी और हिंदी साहित्य की ओर आकर्षित हो रही है।
- छत्तीसगढ़ी भाषा में पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है।
ख. प्रकाशन और विपणन की समस्या
- छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रकाशकों की संख्या सीमित है, जिससे नए लेखकों को मंच नहीं मिल पाता।
- छत्तीसगढ़ी साहित्यिक पुस्तकों की बिक्री और विपणन की उचित व्यवस्था नहीं होने से पाठकों तक सामग्री नहीं पहुँच पाती।
ग. मानकीकृत भाषा का अभाव
- छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए अभी तक भाषा के मानककरण पर सहमति नहीं बनी है।
- कुछ साहित्यकार देवनागरी वर्णमाला कुछ वर्णो से परहेज करते हैं, जबकि कुछ वर्णो का उपयोग कर रहे हैं, जिससे एकरूपता की कमी है।
घ. डिजिटल मीडिया में कम उपस्थिति
- छत्तीसगढ़ी साहित्य की डिजिटल प्लेटफार्मों पर सीमित उपस्थिति है।
- ई-बुक्स, ऑडियोबुक्स और ऑनलाइन पत्रिकाओं की संख्या अन्य भाषाओं की तुलना में बहुत कम है।
2. डिजिटल युग में छत्तीसगढ़ी साहित्य का भविष्य
क. ऑनलाइन प्लेटफार्मों का विस्तार
- छत्तीसगढ़ी साहित्य को ब्लॉग, ई-बुक्स और ऑडियोबुक्स के माध्यम से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना आवश्यक है।
- यूट्यूब, पॉडकास्ट और सोशल मीडिया के जरिए साहित्य को अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सकता है।
ख. डिजिटल प्रकाशन की संभावनाएँ
- छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों को स्वयं-प्रकाशन (Self-Publishing) और ऑनलाइन बुकस्टोर्स (Amazon Kindle, Google Books) का अधिक उपयोग करना चाहिए।
- स्थानीय सरकार और साहित्यिक संगठनों को छत्तीसगढ़ी भाषा में ई-बुक्स और डिजिटल सामग्री को बढ़ावा देना चाहिए।
ग. सोशल मीडिया और साहित्य
- फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रचार के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं।
- ऑनलाइन काव्य पाठ, वेबिनार और डिजिटल संगोष्ठियों का आयोजन किया जा सकता है।
3. साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए सुझाव
क. शैक्षिक संस्थानों में छत्तीसगढ़ी साहित्य का समावेश
- विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छत्तीसगढ़ी साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
- छात्रों के लिए छत्तीसगढ़ी कविता और कहानियों पर आधारित प्रतियोगिताएँ आयोजित की जानी चाहिए।
ख. सरकारी और निजी सहयोग
- छत्तीसगढ़ी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए सरकारी अनुदान और प्रोत्साहन योजनाएँ लागू की जानी चाहिए।
- साहित्यिक मेलों, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
ग. नई लेखन शैली और विधाओं को बढ़ावा
- पारंपरिक कविता और कहानियों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी में साइंस फिक्शन, थ्रिलर और डिजिटल लेखन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- युवा लेखकों को नए विषयों पर लिखने और प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
घ. जनसंचार माध्यमों का उपयोग
- रेडियो, टेलीविजन और पॉडकास्ट के माध्यम से छत्तीसगढ़ी साहित्य को प्रचारित किया जा सकता है।
- साहित्यकारों के साक्षात्कार और काव्य पाठ को ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यमों में प्रसारित किया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ी साहित्य की समृद्ध परंपरा को बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीकों और डिजिटल माध्यमों को अपनाना आवश्यक है। साहित्यकारों, शिक्षाविदों, सरकार और पाठकों के सहयोग से छत्तीसगढ़ी साहित्य को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी स्थापित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य की वर्तमान स्थिति का सारांश
- छत्तीसगढ़ी साहित्य ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है, लेकिन इसे अभी भी मुख्यधारा के साहित्य में पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाया है।
- डिजिटल माध्यमों और युवा लेखकों की सक्रियता के कारण इसकी लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ रही है।
राज्य निर्माण के बाद साहित्यिक विकास का महत्व
- राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य को नई पहचान मिली और विभिन्न विषयों पर लेखन को बढ़ावा मिला।
- साहित्यकारों ने सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विषयों पर कविताएँ और लेख लिखकर छत्तीसगढ़ी भाषा को समृद्ध किया।
भविष्य में शोध और अध्ययन की आवश्यकता
- छत्तीसगढ़ी साहित्य पर गहन शोध किए जाने की आवश्यकता है, जिससे इसकी ऐतिहासिक और समकालीन विशेषताओं को संरक्षित किया जा सके।
- विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों को छत्तीसगढ़ी साहित्य पर विशेष अध्ययन और अनुसंधान कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।
- साहित्यिक विकास और भाषा संरक्षण के लिए नीति-निर्माण और सरकारी समर्थन आवश्यक है।
छत्तीसगढ़ी साहित्य की समृद्ध परंपरा को बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीकों और डिजिटल माध्यमों को अपनाना आवश्यक है। साहित्यकारों, शिक्षाविदों, सरकार और पाठकों के सहयोग से छत्तीसगढ़ी साहित्य को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी स्थापित किया जा सकता है।
संदर्भ ग्रंथ
1. छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन का इतिहास प्रकाशक छत्तीसगढ़ी सेवा मंडल रायपुर (2015)
2. छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि धनी धर्मदास लेखक सोनिया गोस्वामी। (2015)
3. छत्तीसगढ़ कविता के सौ साल-डॉ बलदेव.
4. छत्तीसगढ़ी काव्य: एक विहंग दृष्टि – रामेश्वर शर्मा (2024)
5. छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण -डॉ. विनय कुमार पाठक एवं डॉ. विनोद कुमार वर्मा)