कोख में बसेरा
-सुधा वर्मा
कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखि गई कहानी ‘कोख में बसेरा’ सुप्रसिद्ध समाचार पत्र देशबंधु के छत्तीसगढ़ी अंक मड़ई की संपादिका श्रीमती सुधा वर्मा द्वारा लिखित है । यह कहानी एक सैनिक की मॉं और पत्नी की साहस की कहानी है ।

कोख में बसेरा
अनु टी.वी. के सामने बैठी समाचार देख रही थी। हाथ स्वेटर की सलाइयों पर घूम रही थी, मन कहीं और दौड़ रहा था। अनु अपने बेटे के पीछे भाग रही है। बेटा वासु घर से निकल बगीचे के गमले में छुप जाता है, माँ उसे पकड़ लेती है। अनु कहती है, “देखो मैंने दुश्मन को पकड़ लिया” नहीं नहीं की आवाज के साथ वासु ठांय – ठांय कहता है और मां से लिपट जाता है। नहीं मुझे दुश्मन नहीं पकड़ सकता है मैं उसे पकडूंगा पापा की तरह। फिर अचानक मां की गोद में बैठकर मां के गाल को छूकर कहा “माँ पापा कब आयेंगे सारे दुश्मन को मारकर ? मां ये दुश्मन कैसे होते हैं ? वो लोग इतने गंदे क्यों होते हैं।” अनु कहती है “बस बेटा
दुश्मन तो दुश्मन होते हैं, जमीन के टुकड़ों के लिए लड़ते हैं।” “मां मैं पापा के पास चला जाता हूँ फिर दोनों मिलकर मारेंगे, सारे दुश्मन जल्दी मर जायेंगे फिर पापा हमेशा के लिये हमारे पास आ जायेंगे”। अनु कहती हैं पहले तू बड़ा तो हो जा फिर दुश्मन को मारना ।
बाहर पोस्टमैन आकर एक पत्र देता है। वासु कहता है मैं पापा का लेटर पढूंगा। अनु कहती है कि बेटा लेटर सरकारी है मैं पढूंगी लेटर खोलकर पढ़ती है और आँखों से आँसू टपकने लगते हैं, उसे दिल्ली बुलाया गया था क्योंकि मेजर अरूण शर्मा, अनु के पति शहीद हो चुके हैं और उनकी अन्त्येठी दिल्ली में करने वाले थे। नागपुर से उसी दिन की फ्लाइट से अनु और वासु अकेले दिल्ली चले जाते हैं। रास्ते भर “क्यों” “कहाँ” कैसे प्रश्नों की झड़ी लगाता, वासु थककर सो जाता है।
मां बाप से विरोधकर अपनी इच्छा से अरूण के साथ शादी करने वाली अनु आज अकेलापन महसूस कर रही थी, उसका अब था ही कौन, वासु, जो अभी सात साल का बच्चा था। पापा से मिलने की तीव्र इच्छा इस तरह पूरी होगी उसने सोचा भी नहीं था। दिल्ली के आते ही विचारों पर विराम लगता है। वासु अपने पापा को इस रूप में देखकर सहम जाता है और मां से चिपका रहता है। वापसी में भी वासु कुछ नहीं बोलता, अनु बार-बार उसे पुचकारती रही, वह चुप ही रहता है। अनु के आंखों के आँसू तो सूख ही चुके उसे अब वासु को देखना था।
खाली समय में पत्रकारिता का काम करने वाली अनु ने लेखन को ही अपना लक्ष्य बनाया। सरकार से मिले पैसों से घर का गुजारा करती वासु ने अब मां के साथ खेलना बंद कर दिया था। पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाता शाम को दोस्तों के साथ खेलता मां का कुछ काम भी करता ।
अनु ने धीरे-धीरे अरुण को भूला दिया अब वासु ही उसकी दुनिया थी। एक दिन वासु ने आर्मी में जाने की इच्छा जाहिर की। वह अब ग्रेजुएट हो चुका था। वासु को लग रहा था कि मां उसे नहीं जाने देगी। पर अनु ने तो उसे भगवान के पास ले जाकर विजय तिलक ही लगा दिया।
वासु के आंखों से आंसू झरने लगे जिसे उसने पन्द्रह सालों से बांधकर रखा था। वासु कहता है मैंने तो सोचा ही नहीं, मां कि तुम मुझे आर्मी में जाने दोगी।
अनु ने कहा यदि तुम यह निर्णय नहीं लेते तो मैं तुम्हें जाने के लिए कहती क्योंकि “वह जीवन ही किस काम का जो किसी के काम न आये, धरती तो हमारी मां है उसकी रक्षा करना हमारा पहला कर्त्तव्य है” यही तुम्हारे पापा कहा करते थे। मैं तो चाहूँगी बेटा कि हम अपनी मां की रक्षा में ही जान दे दें।
वासु एयर फोर्स में जाने के लिये बहुत सी परीक्षायें देता है और वासु का चुनाव एयर फोर्स में हो जाता है। मां की आंखों में खुशी के आँसू छलक उठते हैं। वह जब एयर फोर्स ज्वाइन करने जाता है। तब मां उसकी सगाई कर देती है। एक साल के बाद शादी हो जाती है। प्रेरणा वासु की पत्नी बहुत ही प्यारी लड़की रहती है। अनु को एक प्यारी सी बेटी मिल जाती है जो कि पत्रकारिता से जुड़ी रहती है। प्रेरणा अनु के जीवन से बहुत प्रभावित थी। प्रेरणा के लिए अनु गुरू के अलावा एक आदर्श थी। अनु के आदर्शो को ही उसने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और अपने प्यार और सादगी से अनु का दिल जीत लिया। इस हंसते खेलते परिवार को सिर्फ सात दिन में ग्रहण लग गया। कारगिल के युद्ध का शंखनाद हो गया और वासु तुरंत ही कारगिल के ठिकानों की ओर चला गया।
अनु और प्रेरणा अकेली रह गईं, पर विचारों में इतनी समानता, उनके बीच का मां-बेटी सा प्यार दोनों को अकेलेपन का एहसास नहीं होने देता। दोनों साथ साथ सोती, साथ उठती और हर जगह साथ जातीं। कभी-कभी वासु से फोन पर बात हो जाती। अनु को लगता है कि प्रेरणा मां बनने वाली है, उसे डॉ. को दिखाती है। अपने मां बनने की खुशी प्रेरणा वासु के साथ बांटना चाहती है और अनु के गोद में सिर रखकर रोने लगती है। अनु उसके सिर को प्यार से सहलाती है और कहती है- प्रेरणा तू मेरी बेटी होकर रोती है। हिम्मत रख चार-छै महिने में वासु आ जायेगा। रात को फोन पर वासु से बात होती है, तो वह बहुत खुश होता है और कहता है “प्रेरणा मैं अपने बेटे को नेवी में भेजूंगा तुम उसे सम्हाल कर रखना।” और फोन कट जाता है।
अनु कहती है हां क्यों नहीं, मेजर अरूण का पोता है तो देश की सेवा तो करेगा ही मैं उसके लिए अभी से कपड़े स्वेटर बनाने लगती हूँ। अनु स्वेटर के लिए गुलाबी रंग का ऊन लेकर आई। प्रेरणा तो हँस-हँस कर बेहाल थी कि मम्मी बाजार में सब कुछ मिल जाएगा क्यों मेहनत कर रहीं हो। अनु कहती है पोता मेरा होगा, मैं तो उसके लिए मेहनत करूंगी ही।
रात को स्वेटर बनाते अनु को अचानक सुनाई दिया कि एक प्लेन को दुश्मन ने मार गिराया जिसके पायलेट वासु शर्मा थे। उन्होंने दुश्मनों के बहुत दुश्मन से बंकरों को नष्ट कर दिया उसमें रहने वाले करीब तीस दुश्मनों को मार डाला। अंत में प्लेन में आग लगने से वासु शर्मा शहीद हो गये। वासु की फोटो जब टी.वी. पर दिखाई गई तो अनु की धड़कन रुक गई। प्रेरणा भी उसी समय अचानक कमरे में आई, उसने मां को देखा और दौड़कर पानी लाकर दिया। वह स्वयं तो अपने आंसू रोक नहीं पा रही थी। अनु उसे सीने से लगाकर बैठी रही। किसी को खबर नहीं दी गई। दूसरे दिन अखबार में समाचार आने पर लोगों का तांता लग गया परन्तु अनु और प्रेरणा पत्थर बनी बैठी रही, कुछ घर के काम निपटाती रहीं। तीसरे दिन वासु को घर लाया गया तो मां ने तो आँसू पी लिया, परन्तु प्रेरणा अपने आँसू रोक नहीं पाई। प्रेरणा से अनु ने कहा “अपने आँसू बहा अपने को कमजोर मत करो बेटा, तुम्हें तो कठोर बनना है । तुम्हें एक और वासु तैयार करना है।”
प्रेरणा के माँ बाप उसे घर ले जाना चाहते थे परन्तु प्रेरणा अनु को छोड़कर नहीं जाना चाहती थी। अनु भी कहती है कि प्रेरणा मेरी बेटी है वह मेरे पास ही रहेगी।
लाल और पीले फूलों से अनु और प्रेरणा वासु को सजा रही थीं। लोगों में खुसुर फुसुर होने लगी। कैसी औरतें हैं रोती भी नहीं, पत्नी को देखो लगता है सुहाग की सेज सजा रही है। किसी ने कहा शादी करके गया और मर गया लड़की के पैर ठीक नही है। कुछ औरतें दहाड़े मार मार कर रो रही थी। प्रेरणा चुप खड़ी हो गई। अनु अन्दर जाकर सेंट की शीशी लाई और पूरा ही उड़ेल दिया।
अनु ने तेज आवाज में कहा मेरा बेटा मरा नहीं है शहीद हुआ है, मैं क्यों रोउँ, आप लोगों को बुलाया नहीं है, आप लोग जा सकते हैं। आँसू बहाना तो बहुत आसान है पर उसे रोकना बहुत कठिन, मेरी प्रेरणा से आपको प्रेरणा लेनी चाहिए। जैसे ही वासु को कंधे में उठाते हैं तो अनु कहती है रूकना मैं अपने बेटे से कुछ कहना चाहती हूँ यही मेरी श्रद्धांजली है……….
कोख मेरी हर जन्म में, करेगी इन्तजार तेरा।
हर जन्म में रहेगा, मेरी कोख मे बसेरा तेरा ।
हर जन्म में सीचूंगी, ममता से तूझे ।
पुष्प बन खिलेगा, जब तू आंगन में मेरे।
कर दूंगी अर्पित, भारत मां के पैरों में तुझे।
शत् शत् नमन है भारत मां तुझे।
कोख मेरी हर जन्म में करेगी इन्तजार तेरा ।
करेगी इन्तजार तेरा।
इन्तजार तेरा ।
-सुधा वर्मा, रायपुर ,छत्तीसगढ़