सामाजिक सरोकार और प्रगतिशील चेतना को प्रदर्शित करती
काव्य संग्रह ’’कुछ समय की कुछ घटनाएं इस समय’’
-डुमन लाल ध्रुव

साहित्य सृजन की अभिलाषा उन्हीं व्यक्तियों में होती है, जो व्यक्ति और समाज को उत्कृष्ट देखना चाहते हैं और जिनमें प्रबल संवेदनशील आवेग होता है। साहित्यकार का सामाजिक सरोकार जितना अधिक संवेदनशील होगा, उतना ही अधिक निर्भीक साहित्य उसकी लेखनी से अवतरित होगा। ऐसे समय में कवि श्री कुबेर साहू जी की प्रकाशित काव्य संग्रह ’’कुछ समय की कुछ घटनाएं इस समय’’ सामने आते हैं जो सामाजिक सरोकार और प्रगतिशील चेतना को प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त संवेदना और मानवीय मूल्य भी इस संग्रह की आवश्यकता है ।
कवि श्री कुबेर साहू जी का रचना संसार कुछ समय की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है। संग्रह की कविताओं को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे मृग मारीच कस्तूरी की खोज में निकलता है। समय का प्रवाह है पानी की समस्या दिनोंदिन विकराल होती जा रही है। इसमें वेदना कहीं स्व की है तो कहीं समष्टि की लेकिन मनुष्य की पीड़ा हल्की और गहरी रेखाओं की तरह पानी में देखी जा सकती है।
पानी ढूंढना पड़ता है अब
चिराग लेकर गांव – गांव, शहर- शहर
पानी मिलता तो है
पर यदा-कदा
जीवाश्म की शक्ल में ।
कवि श्री कुबेर साहू की रचनाएं गहरे मानवीय मूल्यों से जुड़ी हुई है। कविताओं का तेवर उत्कृष्ट है पर यह बात अलग है कि साहित्यिक बिरादरी में यथेष्ट स्थान नहीं मिल पाया।
अब मुझे रात से डर लगने लगा है
इसलिए नहीं कि रात में अंधेरा घना होता है
झिंगुरों की आवाजें मस्तिष्क को बेधती हैं
बुरी आत्माओं के वास होते हैं पिशाच, शैतान,
जिन्न या ब्रह्मराक्षस
गर्म, ताजा इंसानी खून ढूंढ रहे होते हैं।
सामाजिक दायित्वों के लिए प्रतिबद्ध और सामाजिक विडंबनाओं और विद्रूपताओं को रेखांकित करती श्री कुबेर साहू की रचना में विश्वनियंता भगवान विश्वकर्मा की विलक्षण नीति है ।
यहां के विश्वकर्मा लोग बड़े विलक्षण होते हैं
समुद्र के नीचे सड़कें और-
हवा में महल बना सकते हैं
रातों-रात कंचन नगरी बसा सकते हैं ।
राजा की बातों का अर्थ
और उनके इशारों का मतलब
वे अच्छे से समझते हैं
पहले- पहले से पूरी व्यवस्था करके रखते हैं
रचना में जीवंत तस्वीर उभरती है। कवि श्री कुबेर साहू जी की विशेष खासियत है कि भाषा पर प्रगाढ़ पकड़ है। उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक रहकर रचनात्मक गहराइयों को मापते हुए संभावनाओं का शोधन कार्य किया है। पाठक वर्ग और छात्र छात्राओं के साथ न्याय की व्यंजना है शब्द-
सुना है
कबीर के पास था ऐसा एक शब्द
ढाई आखर वाला
जिसे पाकर वह मनुष्य बन गया था।
’’रोटी का गोल होना’’ स्वाभाविक प्रक्रिया है। ठीक इसी तरह हमारे मानस पटल में जब तक किसी तरह का आंदोलन नहीं होगा तब तक श्रेष्ठ कविता का जन्म हो ही नहीं सकता । पर आज जिस तरह के वातावरण में आम आदमी सांस ले रहा है और जिस तरह की घुटन को पी रहा है उससे उसकी संवेदनाएं काफी गहरी होती जा रही है और कविता की अभिव्यक्ति पहले से ज्यादा घनीभूत होती जा रही है। ’’रोटी का गोल होना’’ युग का अंतर्नाद है जो कहने में बहुत सरल लगता है।
रोटी का होना, गोल होना भी नहीं है।
रोटी का होना
सभ्यता और संस्कारों का होना है
रोटी का होना
भाषा और साहित्य का होना है
रोटी का होना
कला और संगीत का होना है
रोटी का होना
धर्म और दर्शन का होना है
रोटी का होना
ईश्वर और देवताओं का होना है
क्या रोटी का होना मनुष्यता का होना भी हो पाएगा ?
कवि श्री कुबेर साहू की कविताएं बहुत कुछ बोलती हैं और कविताओं में सच्चाई का बयान करना उनका आत्मीय गुण है। ’’कुछ समय की कुछ घटनाएं इस समय’’ बोध – गम्य होने के साथ-साथ संवेदनात्मक धरातल पर खड़ी है। जीवन में बहुत सारे प्रश्न हैं, बहुत सारे उत्तर हैं कहना सरल नहीं है-
बहुत सारे प्रश्न
बहुत सारी सदियों से दुहराये जा रहे हैं
मानो बहुत सारे तोते
लगातार इसे रटे जा रहे हैं
इन तोतों के लिए यह है पवित्र कर्म
क्योंकि इसे मान लिया गया है
रोटी पर स्वामित्व का ईश्वरी मर्म
जीवन में तरह तरह की घटनाएं घटती रहती है और इसे आत्मबोध के स्तर पर स्वीकार लेना ही सहजता है। निराशा की भूमि में आशा के फूल खिलते हैं। मिट्टी से इस्पात की कविता चुनते हैं। धमन भट्टी में जलाकर राख कर जाने के लिए नहीं। समय और घटनाओं की नजाकत को श्री कुबेर साहू ने अपनी इस कविता के माध्यम से अभिव्यक्त किया है-
घटनाएं, घटनाएं होनी चाहिए
दुर्घटनाएं नहीं
घटनाएं कुछ बदलने के लिए होनी चाहिए
घटनाएं कुछ बदलने की तरह होनी चाहिए
जलाकर राख कर जाने के लिए नहीं
आज की कविता हमें महसूस ना कराकर बताने का माध्यम बनती जा रही है। विभिन्न अंतर्विरोध से संघर्ष करने वाले कवियों की रचनाएं जिस दग्ध अनुभूति की अपेक्षा कर रही है उससे पाठक वर्ग हमेशा वंचित हो रहे हैं। आज समीक्षक नवीन कविताओं के पक्षधर नहीं लेकिन उनकी नवीनता को प्राणतत्व जरूर मानते हैं । यह अलग बात है कि कवि की भाव सत्ता हमारी साहित्यिक कृतियों का समाहार है ।
यकीन नहीं होता ?
नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन से पूछ लो
क्या ये सारी चीजें वे यहीं से लेकर नहीं गए थे-
ऑक्सीजन की तरह ?
आस्था और विश्वास शून्य जीवन, आपाधापी, संशय, तनाव, विघटन, विकृत आचरण,भटकी हुई आशा, कुंठा, प्रताड़ित और शोषित मानवता और अज्ञान जन्य अंधेरे में भावना की सिसकियां सुनाई देती हैं। चारों ओर अनुशासनहीनता और उदासी दिखाई देती है। ऐसे समसामयिक माहौल में घुटन होना स्वभाविक है । आज हमारी रचनाएं डायरी के पन्नों और आलमारियों में कैद हो गई है। परन्तु मेरा ऐसा मानना है कि सारी विवशताओं के बीच जो कवि जीता है वह वास्तव में समर्थ कवि है। इस दृष्टि से श्री कुबेर साहू की रचनाएं विविध रूपों से प्रासंगिक है ।
विश्वास करना आपका निजी मामला है
चाहे जितना विश्वास कर लें
मिथकों से भरे हुए शास्त्रों पर
पर आपका कोई अधिकार नहीं बनता
श्रम और श्रमशीलों की अवहेलना करने का
उनके महत्व को नकारने का
कवि श्री कुबेर साहू जी ग्राम भोड़िया जिला राजनांदगांव के यशस्वी कवि हैं गांव की माटी से खलिहानों से कच्चे – पक्के घरों से अग्रजों से साहित्य पुरोधाओं से बहुत प्यार और सम्मान मिला है। इसलिए उनकी कृतियों में ’’कुछ समय की कुछ घटनाएं इस समय’’ की ध्वनि है। अपनों के बीच स्वागत और रेखांकित होगा ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
डुमन लाल ध्रुव
प्रचार-प्रसार अधिकारी
जिला पंचायत धमतरी
मो. नं. 9424210208