हिन्‍दी को हिन्‍दी रहने दें (Let Hindi be a Hindi)

हिन्‍दी को हिन्‍दी रहने दें

-रमेश चौहान

हिन्‍दी को हिन्‍दी रहने दें (Let Hindi be a Hindi)
हिन्‍दी को हिन्‍दी रहने दें (Let Hindi be a Hindi)

हिन्‍दी को हिन्‍दी रहने दें-

हिन्‍दी को हिन्‍दी रहने दें । हिन्‍दी बोल-चाल और लेखन में हो रहे तेजी से परिवर्तन हिन्‍दी भाषा के प्रति चिंता उत्‍पन्‍न कर रही है । इसी चिंता को आपसब से साक्षा करने की इच्‍छा है और आप सब से आग्रह है कि इससे हम सब मिलकर उबरने का प्रयास करें ।

परिवर्तन में भी मूल स्‍वरूप वही बना रहता है (The basic form remains the same even in change)-

परिवर्तन सृष्टि का नियम है समय में परिवर्तन होता ही है किन्‍तु मोटे तौर पर देखा जाए तो प्रकृति का मूल स्‍वरूप वहीं बना रहता है वही दिन, वही रात, वही सूरज, वही चांद । प्रकृति का परिवर्तन भी मूल स्‍वरूप से छेड़खानी नहीं करता किन्‍तु मनुष्‍य अपने बोल-चाल अपने चाल-चलन में ऐसा परिवर्तन करने लगता है कि उसके मूल स्‍वरूप में ही परिवर्तन का खतरा मंडराने लगता है ।

भाषा में उदारीकरण का दुष्प्रभाव (Side effect of Liberalization in Language)-

जब से भूमण्‍डलीय अभिधारणा (globalization concept) का अम्‍योदय हुआ है तब से हर क्षेत्र में उदारता दृष्टिगोरचर होने लगी है । यह उदारीकरण न होकर अंधानुकरण होने लगा है । विशेषकर जब भाषा की बात करते हैं तो हिन्‍दी भाषा में उदारीकरण कुछ ज्‍़यादा ही होने लगा है । हिन्‍दी की अपनी लिपि अपने शब्‍द हैं किन्‍तु उदारता का एक उदाहरण देखिए आज के बच्‍चे हिन्‍दी देवनागरी लिपि के गिनती भी नहीं पहचानते क्‍योंकि हिन्‍दी में हिन्‍दी अंको के स्‍थान पर अंग्रेजी अंको ने ले लिया है । हिन्‍दी में कुछ विदेशी भाषाओं को स्‍वीकार किया जाना तो स्‍वभाविक है और किया भी जाना चाहिए जैसे अंग्रेजी स्‍वयं करती है किन्‍तु अंग्रेजी समर्थक ध्‍यान दे अंग्रेजी दूसरे भाषा को अपने ही लिपि में स्‍वीकार करती है । अंग्रेजी लिखने के लिए किसी दूसरे लिपि का प्रयोग नहीं करते जैसे हिन्‍दी में देखा जा रहा हिन्‍दी को देवनागरी में न लिख कर रोमन में लिखने की परम्‍परा विकसित हो रही है । ग्लोबल के नाम पर जो उदारीकरण का दौर चल रहा है इसका सबसे अधिक प्रभाव भाषा और संस्कृति पर दिखाई दे रहा है ।

हिन्‍दी बोल-चाल में अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव-

अंग्रेजीभाषी भारतीय अंग्रेजी बोले इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं किन्‍तु हिन्‍दी भाषीय भारतीय बातचीत तो हिन्‍दी में ही कर रहे होते हैं किन्‍तु उनके हिन्‍दी संभाषण में अंग्रेजी का पुट इतना अधिक होता है हिन्‍दी का हड्डी-पसली ही टूटा जा रहा है । तकनीकी शब्‍दों जिनके लिए हिन्‍दी शब्‍द नहीं है अथवा क्लिष्‍ट है उसके विकल्‍प के रूप में अंग्रेजी शब्‍दों का प्रयोग किया जाना ही चाहिए किन्‍तु हिन्‍दी के छोटे-छोटे और सरल शब्‍दों को भी अंग्रेजी शब्‍दों से प्रतिस्‍थापित किया जाना सही नहीं है । समान्य बोल चाल में जो हिन्दी बोली जा रही है उसमें 20 प्रतिशत शब्द अंग्रेजी के प्रयोग होने लगे हैं । हिन्‍दी बोलचाल में अंग्रेजी का यह बढ़ता प्रभाव चिंतनीय है ।

हिन्‍दी का खाने वाले ही हिन्‍दी की उपेक्षा कर रहे हैं-

यह विडम्‍बना नहीं तो और क्‍या है जिनका पेट हिन्दी के नाम पर ही भरता है चाहे वह वालीहुड हो या हिन्दी समाचार चैनल, हिन्‍दी यूट्यूब चैनल, हिन्‍दी ब्‍लॉग्‍स आदि हिन्दी में अंग्रेजी को घुसाने में अपना शान समझते हैं । जिन नायक-नायिका को हिन्दी फिल्मों के नाम पर शोहरत हासिल हुई है वे ही जब भी साक्षात्कार देते है या किसी टीवी कार्यक्रम में आते हैं तो 50 प्रतिशत से अधिक अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं । हिन्दी समाचार चैनल तो हिन्दी के कुछ प्रचलित और साधारण शब्दों को लुप्त करने में लगे है जैसे बचाव के लिए rescue, सम के लिए even, विषम के लिए odd आदि ऐसे सैंकड़ों हिन्दी शब्दों के स्थान पर अंग्रेजी शब्द प्रतिस्थापित कर है कि आने वाली पीढ़ी इन हिन्दी शब्दों को भूल जाएंगी । ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि हिन्दी फिल्मों, हिन्दी यूट्यूब चैनल या समाचार चैनल के पटकथा, संवाद और गाने भी या तो रोमन लिपि हिन्दी में लिखे जा रहे हैं या शुद्ध अंग्रेजी में लिखे जा रहे हैं । यह हिन्‍दी की उपेक्षा नहीं तो और क्‍या है?

सोशल मीडिया में हिन्‍दी की दुर्गति-

सोशल मीडिया का प्रचलन जब से बढ़ा है हिन्‍दी की दुर्गति हो रही है । नए जमाने के बच्‍चे हिन्‍दी से दो प्रकार से खिलवाड़ कर रहे हैं एक तो ऐसे लोग हिन्‍दी को देवनागरी लिपि में लिखने के स्‍थान पर रोमन लिपि में लिख रहे हैं ।  ऐसे लोगों को पता होना चाहिए कि हिन्‍दी की अपनी एक लिपि है जिसे देवनागरी लिपि कहते हैं । यह भी पता होना चाहिए कि लोग घूमने-फिरने बाहर जा सकते हैं, बड़े-बड़े होटलों में रह सकते हैं किन्‍तु लौटकर उसे अपने ही घर आना होगा अपना घर अपना होता है, यही बात भाषा पर भी लागू है आप अपना बिस्‍तर दूसरों के खाट में कब तक लगाते रहेंगे । हां यदि सोशल मीडिया के उपकरण पर हिन्‍दी देवनागरी लिपि का विकल्‍प नहीं होता तो यह एक बार स्‍वीकार भी था किन्‍तु वहां हिन्‍दी देवनागरी कीबोर्ड का विकल्‍प उपलब्‍ध है, फिर भी उसका प्रयोग नहीं करना किसी भी स्थिति में स्‍वीकार्य नहीं है ।

दूसरा यह कि कुछ लोग हमें हिन्‍दी देवनागरी लिपि लिखा तो दिखा रहे होते हैं किन्‍तु मूलत: वह एल्‍फाबेटिक की बोर्ड के सहारे से रोमन में लिख कर देवनागरी दिखा रहे होते हैं । यह दोनों ही स्थिति अच्‍छी नहीं है । आप हिन्‍दी में सोच रहे होते हैं, हिन्‍दी में बात कर रहे होते तो आखिर ऐसी क्‍या विवशता है कि आप हिन्‍दी में नहीं लिख पा रहे हैं । कुछ बच्‍चे तर्क देते हैं हिन्‍दी कीबोर्ड में लिखना कठीन होता है ऐसे बच्‍चों से प्रश्‍न है कि स्‍कूल की पढ़ाई भी कठीन होती तो क्‍या आप इस डर से पढ़ाई छोड़ देते हैं, आपके माता-पिता भी आपकी भलाई के लिए कभी-कभी आप से कठोरता से प्रस्‍तुत होते हैं, तो क्‍या आप उन्‍हें छोड़ देते हैं । युवा शक्ति संघर्षो से जूझ कर नए रास्‍ते निकालने के लिए जाने जाते हैं और आप  इस छोटी से कठीनाई से पार नहीं पा रहें हैं ।

बात अंग्रेजी का विरोध का नहीं हिन्‍दी के मूल स्‍वरूप के नष्‍ट होने की चिंता है-

बात अंग्रेजी के विरोध का नहीं अंग्रेजी भाषा के काम लिए अंग्रेजी का प्रयोग किया जाना चाहिए किन्‍तु हिन्दी के स्वरूप को बिगाड़ने के लिए अत्यधिक मात्रा में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कहां तक उचित है । यह बहुत विरोधाभाष लग रहा है एक ओर जहां  इंटरनेट में हिन्दी प्रयोग करने वालों की संख्या में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है चाहे वह हिन्दी ब्लाॅग हो चाहे हिन्दी यूट्यूब चैनल हिन्दी का ही बोल-बाला दिख रहा है किन्तु उसमें प्रयुक्त हिन्दी को देख कर रोना आता है । हिन्दी को हिन्दी स्वरूप में लिखने-पढ़ने-बोलने में या तो दिक्कत आ रही है या लोग शर्म महसूस कर रहे है।

अनावश्‍यक अंग्रेजी प्रयोग को शान समझना दुखद स्थिति है-

दूर के ढोल सुहाने होते हैं, चमक के प्रति आकर्षण होता है इस आभासी चमक के कारण जब कोई छत्तीसगढ़िया छत्तीसगढ़ी बोलता है तो उसे गंवार शब्द से विभूषित किया जाता है, जब कोई हिन्दी भाषी 85-90 प्रतिशत भी शुद्ध हिन्दी बोले तो पुराने विचारधरा के आदमी कह कर उपेक्षा की जाती है । यह स्थिति तो हिन्दी बोलचाल की है । यदि हिन्दी लेखन में ध्यान दें  इसकी स्थिति और अधिक दयनीय है । इंटरनेट और मोबाइल के इस युग में ज्‍़यादतर लोग हिन्दी को हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखने के बजाय रोमन लिपि के माध्यम से हिन्दी लिख रहे है । आश्‍यर्च है इस शर्मसार स्थिति को भी लोग अपनी शान समझते हैं ।

उदारीकरण केवल उतना ही होना चाहिए जिससे की मूल विकृत न हो

जहां अंग्रेजों के शासन काल में अग्रेजो के ही अनुसार केवल दो ही व्यक्ति  ठीक-ठाक अंग्रेजी बोल सकते थे । त्रुटि-फूटी अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या भी कोई हजार-दस हजार के बीच रहा होगा । इस समय हिन्दी अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति की भाषा थी !

दुखद स्थिति है सारे सरकारी काम अंग्रेजी भाषा में ही हो रहे हैं, यही प्रमुख कारण है लोग अंगेजी बोलना-लिखना शान समझ रहे हैं । अग्रेजी बोलने-लिखने में आपत्ती से अधिक हिन्दी भाषा को विकृत करने पर आपत्ती है । उदारीकरण केवल उतना ही होना चाहिए जिससे की मूल विकृत न हो ।

अपनत्व की आवश्यकता है-

बात केवल हिन्दी में अंग्रेजी की घुसपैठ बस की नहीं है हिन्दी में उर्दू के शब्द भी घालमेल किए हुए है । हिन्‍दी शब्‍दकोश में अन्य भाषाओं के जो शब्द स्वीकार किए गए वे तो स्वीकार्य है किन्तु अनावश्यक रूप से अंग्रेजी या उर्दू शब्‍दों को हिन्दी में प्रयोग करना दासता का प्रतीक दिखता है, अपनी भाषा के प्रति स्नेह का न होना दर्शाता है । किसी को अपना मान लिया जाए तो अपनों के दोष नहीं दिखते । आप हिन्‍दी को अपना मान कर तो देखिए सारी कठिनाई धीरे-धीरे ही सही लेकिन अपने आप ही दूर हो जाएंगी । प्रश्‍न केवल इतना ही कि आप हिन्‍दी को हृदय से स्‍वीकार कीजिए बस ।

-रमेश चौहान

Loading

5 thoughts on “हिन्‍दी को हिन्‍दी रहने दें (Let Hindi be a Hindi)

  1. सटीक विश्लेषण है हिंदी की दुःखद स्थिति का।आपकी विचारों से पूर्णतः सहमत। लेकिन एक सवाल….क्या आप अपने बच्चों को हिंदी माध्यम में पढ़ा रहे हैं?
    1.आपके उक्त लेख में भाषा और व्याकरण की त्रुटियों में सुधार की आवश्यकता है।
    2.अंग्रेज़ी की तरह उर्दू भी हमारी हिंदी में *शामिल* है। बिना उर्दू के प्रयोग के हम शुध्द हिंदी नहीं लिखते।

    1. आप इस आलेख को अपना बहुमूल्य समय दिए इसके लिए आपका हार्दिक अभिनंदन । आपके सवालों और सुझावों के संदर्भ में कहना चाहूंगा मेरे दो बच्चे हैं और दोनों बच्चे हिंदी माध्यम में ही पढ़ाई कर रहे हैं । सुधार की आवश्यकता जीवन का अभिन्न अंग है । हम सभी सतत कुछ सीखते और सुधारते रहते हैं । हिंदी में अंग्रेजी की तरह ही और उर्दू शब्दों का प्रयोग भी निःसंदेह चिंतनीय है आपके इस विचार से मैं पूरी तरह सहमत हूं ।

  2. आप हिन्दी भाषा की उन्नति एवं समृद्धि पर सतत कार्य करते रहें …. सत्य का पालन ऐसे ही विचारों से संभव हो सकता है …. 👍👍

    💐💐🙏🙏

  3. बहुत शानदार आलेख भैयाजी हमारी हिन्दी के प्रति गहन चिंतन आपके सृजन में स्पष्ट परिलक्षित होती हुई।
    बहुत बधाई अनमोल साहित्य सृजन हेतु 🙏🙏🙏

Leave a Reply to Ramesh kumar Chauhan Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *