छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह आपरेशन एक्के घॉंव भाग-2

छ्त्तीसगढ़िया के धियान रखैया

छत्तीसगढ़िया के धियान रखैया, किसान राज चलैया।

मोर छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता के,नवा सुरुज उगैया।।

हमर बर तो एकर पहिली, 

रिहिस रात अंधियारी। 

हमर अँछरा सोना हीरा,

तभो करेन बनिहारी ।।

आज होगेन जमींदार हमूमन,हवे कोन हँसैया।

मोर छत्तीसगढ़ में, स्वतंत्रता के नवॉं सुरुज उगैया।।

नरवा मन में पुल बंधागे, 

सड़क चकाचक बनगे। 

पक्का आवास गरीब ला मिलगे, 

धान के कीमत बढ़गे।।

सर्व शिक्षा अभियान चला के, ज्ञान के अलख जगैया।

मोर छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता के,नवा सुरुज उगैया।।

परे नींद कोनो ला.. 

परे नींद कोनो ला जगाना ठीक नइ हे। 

ककरो घर आगी लगाना ठीक नइ हे। 

हाय लग जथे अमीर ला गरीब के, 

कोनो ला बरबेली सताना ठीक नइ हे।

लफर – लफर गोठियाना ठीक नइ हे, 

सिधवा मनखे ला सोंटियाना ठीक नइ हे। 

जानत हन तूँहर घर हवे हारमोनियम, 

अधरतिया वहू ला बजाना ठीक नइ हे।

जहू – तहू ला रुआब देखाना ठीक नइ हे।

कोचक के घाव नून लगाना ठीक नइ हे।

लहज बिहज रही बाबू  जिंदगी के रद्दा में, 

दाई ददा के नाम डुबाना ठीक नइ हे। 

 ०००

बेटी बर अभिमान करौ गा

बेटी पर अभिमान करौ गा, 

बेटी घर के जान हरे। 

देश के कर्णधार उपजैया, 

एकर कोख महान हरे।।

एकर गरभ ले चौकीदार अउ, 

गद्दीदार तक जनमे हे। 

दुनिया के सृजन विध्वंस करैया,

पालनहार तक जनमे हे।।

हम सब बर उपकार करैया, 

हम सबके भगवान हरे। 

देश के कर्णधार उपजैया, 

एकर कोख महान हरे।।

सीता सती अनसुईया सावित्री,

पन्नाधाय कस दाई हे। 

लछमीबाई अस हक बर लड़त,

सौंहत काली माईं हे।।

रामकृष्ण महावीर असन,

अनमोल रतन के खान हरे। 

देश के कर्णधार उपजैया, 

एकर कोख महान हरे।। 

       ०००

जिमिकांदा

ओरवाती के पानी, छानी मा सोखे,

जिमी कांदा के पोंगा, चलनी मा रोखे।

जिमिकांदा…. 

कोन जनी का ये पानी मा घोरे, 

जहू तहू इही मा नीयत बोरे। जिमिकांदा… 

पानी रे पीये खाये ला पेरा, 

बरनाये बछवा उन्डाये केरा। जिमिकांदा… 

इज्जत गँवागे तभो नइ चेते, 

धन डोगानी शेखी मा बेचे। जिमिकांदा… 

दरुहा संग जिनगी फंदागे दौरी, 

सोना पॉंखी रौंदागे रिसागे गौरी। जिमिकांदा… 

सुक्खा नरवा मा जाये बीने ला खरसी, 

गौंहा डोमी खुंदागे होवथे बरसी। जिमिकांदा… 

          ०००

जिनगी हमर हरियागे भैया

जिनगी हमर हरियागे भैया, मया पिरित फरियागे। 

कचरा कस लागय ये जिनगी, दुख के दिन दुरियागे।

हमरो घर में सुख के बरसा, 

बरसिस तन ला जुड़ायेन। 

करजा बोड़ी सबके नक्खी, 

होगे मौज उड़ायेन। 

दिन उजियारी आगे भैया, दुख कालिख छरियागे। 

कचरा कस लागय ये जिनगी, दुख के दिन दुरियागे।

अब डिपरा ला कोड़के,

खोधरा पाटे के दिन नइ हे। 

सॉंवा चुहुका कोदिला करगा, 

छाँटे के दिन नइ हे ।

जुलम करैया आँखी गड़ैया, अलग जगा तिरियागे।

कचरा कस लागे ये जिनगी, दुख के दिन दुरियागे। 

कथे अशोक आकाश किसनहा, 

के दिन आगे भैया।

अब तो एकर पार उतरगे, 

बूड़त जीवन नैया। 

सुख सुम्मत जुरियागे भैया, दुख बिपदा छरियागे ।

कचरा कस लागे ये जिनगी, दुख के दिन दुरियागे। 

          ०००

मोर शादी के बन्धन

मोर शादी के बन्धन, पुरगे अत्तिक गॉंठ। 

कतको छोरे नइ छुटे, होगे अत्तिक टॉंठ।। 

होगे अत्तिक टॉंठ, साल के गॉंठ पारही। 

भगवान असन देव, बधाई उमर बाढ़ही।। 

जी अशोक आकाश, जिन्दगी आजादी के। 

तीसवॉं बरस गॉंठ, पुरगे मोर शादी के।। 

            ०००

फाग गीत

एसो के फागुन तोला छोड़ँव नहीं वो, 

रंग डार के रहूँ। 

रंग डार के रहूँ, रंग डार के रहूँ, 

रंग डार के रहूँ ।

एसो के फागुन तोला छोड़ँव नहीं वो, 

रंग डार के रहूँ। 

मोर मन के कोंटा में, तोर सुन्दर मुरती। 

कोनो अउ टीपे झन, ये चिरई उड़ती।। 

तोरो मन में माया गाँठ, पार के रहूँ ,

रंग डार के रहूँ.. 

एसो के फागुन तोला छोड़ँव नहीं वो, 

रंग डार के रहूँ… 

 तऊँरत रहिथौं दिन भर, मया के अगम दाहरा।

मिले बर रोज दिन, बॉंधत रथस आहड़ा।।

तोरो दिल में मया गॉंठ, पार के रहूँ , 

रंग डार के रहूँ…

एसो के फागुन तोला छोड़ँव नहीं वो, 

रंग डार के रहूँ… 

          ०००

जब्बर काल कोरोना भैया

जब्बर काल कोरोना भैया, जब्बर काल कोरोना। 

रहो धंधाये कुरिया में नइते, सबला परही रोना।

जब्बर कल कोरोना भैया, जब्बर काल कोरोना…

दुनिया के सब देश हा भैया, एकर आगू मड़ियागे। 

चीन अमेरिका इटली इंग्लैंड, फ्राँस मुहूँ करियागे। 

जेन देश सचेत नइ रीहिस, फैलिस कोना-कोना …

जब्बर काल कोरोना भैया, जब्बर काल कोरोना …

नाक बोहाथे मुड़ी पिराथे, आँखी होथे लाल । 

लक-लक ले देहें तिप जाथे, छाती में बैठे काल।।

खाँसी आथे साँस बोजाथेे, सबला परथे रोना …

जब्बर काल कोरोना भैया, जब्बर काल कोरोना …

जेन घर में एक झन ला होथे, पटपट ले मर जाथे। 

तड़फड़-तड़फड़ मछरी असन, जीव ला ये तड़पाथे ।।

मास्क लगाओ रखो सफाई, हाथ साबुन में धोना…

जब्बर काल कोरोना भैया, जब्बर काल कोरोना। 

              ०००

ऑंखी-आँखी रतिहा बीते 

आँखी-आँखी रतिहा बीते, होय कैसे भोर ।

लागे तोर बिना सुन्ना गली खोर। 

पनियर फागुन रंग लागे, 

डारा पाना अइलागे।

बोहागे काजर आँखी कोर…

      लागे तोर बिना सुन्ना गली खोर…

पल भर में बर नइ जातिस,

मोर ये जवानी भुरले ।

उड़ागेहे जीवन रुख ले, 

मोर मया चिरई फुर ले। 

पियासा रहिगे ये चकोर… 

       लागे तोर बिना सुन्ना गली खोर… 

अरझे फुल पॉंखी गुड़ागे, 

ऑंखी के नींद उड़ागे। 

आशा के दीया बुझागे, 

जीवन के नाड़ी जुड़ागे। 

बुझागे पल में अंजोर… 

       लागे तोर बिना सुन्ना गली खोर… 

          ०००

मोर प्यारी भैंसी सुन्दरी बर

सॉंची कहे तोर आवन से हमरे, 

कोठा में आईस बहार भैंसी। 

ए भैंसी… 

हाथी सही तोर पूछी डोलत हे, 

मुसुवा सही टेंड़े कान। 

खावथे दाना भूँसा मगन हो, 

पले भुसुण्ड समान। 

दे दे पँड़िया अपनेच असन, 

चर चर के आये कछार भैंसी, 

ए भैंसी…. 

सॉंची कहे तोर आवन से हमरे, 

 कोठा में आईस बहार भैंसी… 

         ०००

मोर प्यारी भैंसी सुन्दरी बर

सॉंची कहे तोर आवन से हमरे, 

कोठा में आईस बहार भैंसी। 

ए भैंसी… 

हाथी सही तोर पूछी डोलत हे, 

मुसुवा सही टेंड़े कान। 

खावथे दाना भूँसा मगन हो, 

पले भुसुण्ड समान। 

दे दे पँड़िया अपनेच असन, 

चर चर के आये कछार भैंसी, 

ए भैंसी…. 

सॉंची कहे तोर आवन से हमरे, 

 कोठा में आईस बहार भैंसी… 

         ०००

-डॉ अशोक आकाश

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