यात्रा संस्‍मरण : पत्थरों पर गीत-जीवन के मीत भाग-3

पत्थरों पर गीत-जीवन के मीत

श्रीमती तुलसी देवी तिवारी

गतांक से आगे

भाग-3 प्रताप महाविद्यालय अमलनेर

प्रताप महाविद्यालय अमलनेर
प्रताप महाविद्यालय अमलनेर

वैसे अकेले प्रताप महाविद्यालय में कई हजार विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। गाँव-गिरावं की छात्राएँ वहाँ रहकर अध्ययन कर रही हैं, वहाँ तो नर्सरी से लेकर उच्च शिक्षा के 25 विभाग कार्यरत् हैं।

समृद्ध पुस्तकालय, अलग-अलग विभाग के विस्तृत भवन, अध्यापक, प्राध्यापक, सफाई कर्मचारी, रक्षक आदि भरे पड़े हैं। परन्तु जीतू की बात भी तो कहीं न कहीं सच्चाई के करीब होगी न ?

प्रताप महाविद्यालय शासकीय अनुदान प्राप्त महाविद्यालय है। आबादी से दूर यह विद्यालय अमलनेर की पहचान है। इसे प्रताप सेठजी ने सन् 1936 में स्थापित किया थौ प्रारंम्भ में साने गुरूजी वृक्ष की छाया में बैठकर विद्या अध्ययन कराते थे, प्रातप सेठ इन्दौर से आये महान् पुण्यात्मा निःसन्तान उद्योगपति थे। उन्होंने अमलनेर में पाँच मंदिर बनवाये कर्ममंदिर, यह हजारो एकड़ में फैली कपड़े की मील थी, हजारो कर्मचारी यहाँ काम करते थे, अरोग्य मंदिर – यह भव्य अस्पताल है, श्री राम मंदिर – यह भव्यतम् श्रीराम जानकी मंदिर है। ज्ञान मंदिर – प्रताप महाविद्यालय, निराश्रित मंदिर – यहाँ बेसहारा लोगों को शरण मिलती है। उन्होंने प्रारंभ में सात करोड़ रूपये खर्च कर इन मंदिरों की स्थापना की थी। एक लड़के को गोद लिया था, वह भी भगवान् को प्यारा हो गया। अभी यह सारी सम्पत्ति विवाद में पड़ी हुई है। मील बन्द कर दी गई है। कर्मचारियों के घरों की भूमि सरकार ने अधिग्रहित कर ली है, दादा मूंदड़े उनके रिश्तेदार हैं, वे ही मुख्य ट्रस्टी हैं। मैंने खुली आँखों आज दिन में उस मनीषी के विगत वैभव को देखा था।

सोचते-सोचते हम प्रताप महाविद्यालय के गेट नं. 2 पर जा पहुँचे। आटो रुकी, हमने जीतू को अपनी ओर से कुछ रूपये दिये। दिनेश का नंबर लिया।

‘‘कभी आने का तो हमको बुला लेने का मैडम’’। वे ऐसे विदा ले रहे थे जैसे बड़े पुराने आत्मीय हों। अब फिर बून्दे तड़ातड़ पड़ने लगीं। गेट पर उस समय सन्नाटा छाया हुआ था। इसके तुरन्त बाद हमें साने गुरू जी मुफ्त वाचनालय में अमलनेर के नागरिकों के बीच काव्य पाठ करना था। थोड़ी देर बाद कार के पीछे पीछे सब भी आ पहुँची। कार से सभी लोगों को वाचनालय पहुँचाने की जिम्मेदारी आयोजकों की थी। एक और कार आई, उसमें जितने बैठ सकते थे बैठ गये, हम यहाँ भी पिछड़ गये। वर्मा मैडम, दुबे मैडम हल्ला माचा रहीं थीं, राव मैडम शांत थीं, मैं बारी-बारी से सभी की बाते सुन रही थी अब तक अंधेरा घना हो चुका था। लग रहा था, हमारा पहुँचना नहीं हो पायेगा। हम एक पेड़ के चबूतरे पर बैठे पछता रहे थे, कविता पढ़ने के लिए सभी उत्सुक थे। वर्मा जी बार-बार फोन कर रहे थे।

पता चला कि एक कार हमें लेने आ रही है। उसके रुकते ही सब बैठ गये मैं रह गई। एक प्राध्यापक हमारी व्यवस्था कर रहे थे, मैंने उनसे निवेदन किया की मुझे बाईक से पहुँचा दें। भींगते हुए हम आयोजन स्थल की ओर चल पड़े। रास्ते में उन्होंने इस स्थान के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। प्रातप सेठ की मील का विस्तृत क्षेत्र दिखाया, जहाँ अब कुछे टूटे-फूटे घर अपनी व्यथा की कथा कह रहे हैं।

आयोजन स्थल महाविद्यालय से लगभग पाँच किलोमीटर तो होगा ही। वहाँ पहुँचकर देखा की आगे की कुछ पंक्तियों को छोड़कर सारा हाल श्रोताओं से भरा हुआ है। कुछ कवि अभी तक अपना नाम प्रस्तोता में नहीं लिखा पाये थे, इधर-उधर कोशिश में लगे थे। विलंब अधिक हो चुका था, कवि ज्यादा थे, अतः आयोजक भी धर्म संकट में थे। मैं अभी अग्र पंक्ति में बैठ भी नहीं पाई थी कि बत्ती गुल हो गई। धुप्प अंधेरा छा गया। किसी ने अपना मोबाईल ऑन करके थोड़ी रोशनी की। एक उल्लेखनीय बात थी, हाल एकदम शांत था। ऊब के बीच हम बिजली आने का इंतजार करते रहे, आधे घंटे बाद आयोजकों ने पेट्रोमेक्स की रोशनी की, उसकी रोशनी में शैलजा माहेश्वरी कुछ कहने जा रहीं थी कि झम्म से लाइट आ गई। सभी के चेहरे खिल उठे। अब तक नौ बज चुके थे। आयोजकों द्वारा एक-एक छोटी रचना पढ़ने का सनम्र आग्रह किया गया। कुछ ने माना कुछ ने मनमानी की। हास्य रस के नाम पर संचालक लगातार फूहड़ बासी लतीफे परोसते रहे, श्रोता हर रचना का आनंद लेते रहे, एक व्यक्ति भी उठने का नाम नहीं ले रहा था। केटरिंग वालों का ख्याल कर लगगभग ग्यारह बजे, स्मृति चिन्ह आदि देकर कवि सम्मेलन समाप्त किया गया।

पानी फिर बरसने लगा था। हम भींगते हुए सीधे भोजन कक्ष पहुँचे, वहाँ कुछ लोग खा रहे थे, भोजन ठण्डा था और केटर गर्म। ‘‘यह समय है आप लोगोें के खाने का’’? मेरा तो दिन लगभग उपवास में ही बीता था, फिर भी मुझसे कुछ खाया नहीं गया।

शेष अगले अंक में

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