मेरी कुछ क्षणिकाएं-रमेश चौहान

मेरी कुछ क्षणिकाएं

-रमेश चौहान

मेरी कुछ क्षणिकाएं-रमेश चौहान

1.

थू है, थू है, थू
तेरे मनुष्य होने पर
शिक्षा के नाम पर महंगी शिक्षा लेने पर
अपने पैर पर खड़ा होने के नाम पर
किसी के पैर उखाड़ने पर
माँ का दूध और बाप का खून
तेरे ठाठ में ठाढ़ है
और तू
दो समय का भोजन तो दूर
दो शब्द प्रेम के नहीं दे सकते !
थू है, थू है, थू

2.

अंतर है साहब
कल और आज में
जमाना जो बदल गया है
कल माँ-बाप बहू ब्याह कर लाते थे
बहू, बहू होती थी परिवार का
पहले विवाह दो कुलों, दो परिवारों का होता था,
बेटी-बहू पर दोनों कुलों, दोनों परिवारों का भार होता था !
अब पति पत्नि ब्याहता है
दो दिलों का राग सुनाता है
केवल दो का फेमली बनाता है
अंतर है साहब

3.

बेटी
मैंने तो तुझे इसलिये
तो इतना नहीं पढ़ाया
दुनिया से दो-दो हाथ करना नहीं सीखाया
चार पैसा कमाने के लिए नौकरी नहीं दिलाया
कि
तू ब्याह कर
अपने सास-ससुर को
दाने-दाने के लिए मोहताज करेगी
मेरे नाम को यूँ बदनाम करेगी
जरा सोच!
मैं और तेरी माँ भी
किसी बेटी के सास-ससुर हैं ।

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6 thoughts on “मेरी कुछ क्षणिकाएं-रमेश चौहान

  1. बहुत ही शिक्षाप्रद क्षनिंकाए चौहान जी

  2. अप्रतिम,,व वास्तविकता से ओतप्रोत भैया,,,, सुनिल शर्मा नील

  3. मानव हृदय की सहज अभिव्यक्ति आपकी क्षणिकाओं में दृष्टव्य होती है …….. ढेर सारी शुभकामनाएँ …….. 💐💐💐💐 आपका साहित्यिक सहचर – प्रकाश गुप्ता “हमसफ़र” …….. ✍️

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