काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-14-डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

काव्‍य श्रृंखला :

सांध्‍य दीप भाग-14

-डॉ. अशोक आकाश

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-14-डॉ. अशोक आकाश
काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-14-डॉ. अशोक आकाश

/59/

ऐ नवयुवकों उठो सम्हालो,
सम्यक शासन डोर को |
किसलयमय सुसज्जित कर दो,
दृढ़ भारत चहुं ओर को ||

जिसने दुःखमय जगसुख खातिर,
आशियाना छोड़ा अपना |
सुनाओ वंदनीय त्याग के किस्से,
दृढ़ साकार करो सपना ||

अन्यायी नत हुआ मगन |
सांध्यदीप सद्कर्म शरण ||

पावन अंतस राम बसालो,
कभी हृदय में रहिमन को |
अंधकार में भटके हैं,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***

/60/

सामर्थ्य भरो संघर्ष करो,
रण जीतो प्रबल प्रहारों से |
कॉप उठेगा अरिदल का दिल,
बब्बर शेर दहाड़ों से ||

गद्दारों को दण्डित कर,
दो झोंक उन्हे अंगारों पे |
गूंज उठे ब्रम्हॉड मचेगा रार,
तेरे जयकारों से ||

पालन कर पुरुषार्थ परम |
धारण कर लो वीर धरम ||

वारिद बन तन मरुथल के लिए,
तज चल स्वसुख सर्जन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***

/61/

चहूंदिशा जब अमानिशा,
घनघोर तिमिर बरसाता |
सांध्यदीप लौ नर्तन कर,
रिपु मर्दन कर इतराता ||

लपट लिपटती चूमे जगती,
किरणें शौर्य मचाता |
दृढ़ हो जाता तिमिरॉचल में,
बनकर यही विधाता ||

करता नित जगहित चिंतन |
भरता भावों से चितवन ||

जीत धरे नत शीश करे,
जगदीश वरे चलता वन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***

/62/

सांध्यदीप व्याकुल युवा मन,
भर देता नवजीवन आस |
मन तल शीतल तन चीतल,
जीवनरस सींचे स्वयं प्रकाश ||

बैठ पिघलता रुग्ण झलकता,
घुट-घुट जीता जीवित लाश |
तज निर्बलता धार चपलता,
होती सफलता उसकी दास ||

पाकर दिव्य प्रभात किरण |
हो जाता तम स्वयं हिरण ||

नेह छलकता हृदय पुलकता,
नित्य लगे प्रिय सुधिजन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***

/63/

अविरल सुख की धार बहाओ,
अपने क्षणिक इशारों से |
शक्ति समावेशित कर लो,
सुंदरतम् चॉद सितारों से ||

प्रात-निशि उल्लासित रह लो,
किंचित शोकाभास नहीं |
इतिहास छिपा जिसके अंतस,
उसका होता उपहास कहीं ||

पालन कर लो पुण्य करम |
धारण करलो धीर धरम ||

बन बल तन निर्बल के लिये,
परिमल कर जीवन-वर्षण को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
+++

-डॉ. अशोक आकाश

शेष भाग अगले अंक में

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